कुश्ती संघ की मनमानी:पहलवान अपने मेडल सजाएं या गंगा में बहाएं, किसी को फ़र्क़ क्यों नहीं पड़ता!
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भास्कर ओपिनियनकुश्ती संघ की मनमानी:पहलवान अपने मेडल सजाएं या गंगा में बहाएं, किसी को फ़र्क़ क्यों नहीं पड़ता!

देश के लिए कई गोल्ड मेडल लाने वाले पहलवान जिनमें ज़्यादातर महिला पहलवान शामिल हैं, अपने मेडल को हाथ में पकड़े रो रहे हैं, लेकिन सरकार उनकी एक भी सुनने को तैयार नहीं है। कुश्ती संघ के एक सर्वेसर्वा का इतना क्या दबदबा है कि देश के लिए जीवनभर संघर्ष करने वाली महिला पहलवानों की आवाज़ सरकार के कानों तक पहुँच ही नहीं पा रही है।

कुल मिलाकर, सरकार इन पहलवानों की सुन नहीं रही है। पुलिस उन पर लाठियाँ बरसा रही है और कुश्ती संघ के आरोपी अध्यक्ष (अब पूर्व) के खिलाफ निष्पक्ष जांच तक के लिए कोई तैयार नहीं है। वह अट्टहास कर रहा है। पहलवानों के आंसुओं पर फूहड़ता की हद तक हंस रहा है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हो पा रही। कोई जाँच नहीं हो पा रही।

इस सब से थक हार कर, और पुलिस के अत्याचार से परेशान होकर, महिला पहलवानों ने अपने सारे मेडल गंगा में बहा देने का निर्णय ले लिया। लगभग कई चोटियों के खिलाड़ियों ने इसे आश्चर्यजनक बताया। कुछ दलों ने इसे सरकार की हेकड़ी का दुष्परिणाम बताया, लेकिन सरकार के पक्ष वाले दल के पदाधिकारी और कुछ सांसद कहते रहे कि गंगा में मेडल बहाने का निर्णय खुद पहलवानों का है। उन्हें कौन रोक सकता है। उनकी मर्ज़ी है- वे अपने मेडलों को घर में सजाएं या गंगा में बहाएँ।

आश्चर्य होता है ऐसे बयानों पर। ये बात और है कि कुछ लोगों ने खुद इनीशिएटिव लेकर मेडलों को बहाए जाने से रोक लिया।

आख़िर क्या हो गया है हमारे तंत्र को? याद होगा मेडलों को गंगा में बहाने का निर्णय दरअसल, महानतम मुक्केबाज़ मुहम्मद अली के कदमों पर चलने जैसा है। मुहम्मद अली की बायोग्राफ़ी के अनुसार एक बार उन्हें एक रेस्त्रां में घुसने नहीं दिया गया था। दरअसल, यह रेस्त्रां गोरे लोगों के लिए बना था। मुहम्मद अली इस तरह के नस्लवाद के सख़्त ख़िलाफ़ थे। आख़िरकार रोम ओलंपिक से लौटने के कुछ समय बाद ही उन्होंने अपना गोल्ड मेडल ओहियो नदी में फेंक दिया था।

आख़िरकार 1996 के अटलांटिक ओलंपिक में अली को दूसरा मेडल दिया गया।

बॉक्सर मुहम्मद अली ने अपनी बायोग्राफी में ओहियो नदी में गोल्ड मेडल फेंक देने की बात का खुलासा किया था।

बॉक्सर मुहम्मद अली ने अपनी बायोग्राफी में ओहियो नदी में गोल्ड मेडल फेंक देने की बात का खुलासा किया था।

आख़िर ऐसा क्या है कि भारतीय पहलवानों के इस मामले में महीनों से न्याय नहीं हो पा रहा है। सुप्रीम कोर्ट तक ने हस्तक्षेप किया, लेकिन न तो पहलवानों पर पुलिस का अत्याचार कम हुआ और न ही सरकार ने इनकी कोई बात सुनी। उल्टे आरोपी कुश्ती संघ के सर्वेसर्वा अपने पक्ष में कभी साधुओं को लामबंद कर रहे हैं तो कभी वे पहलवानों के आंसुओं का खुलेआम मज़ाक़ उड़ा रहे हैं। इस तरह का भावनात्मक मज़ाक़ बंद होना चाहिए।

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