उत्तर प्रदेश पुलिस को एक बार फिर पूर्णकालिक DGP के बजाय कार्यवाहक DGP से काम चलाना पड़ेगा. यूपी सरकार ने 1988 बैच के IPS और डीजी विजिलेंस व सीबीसीआईडी विजय कुमार को उत्तर प्रदेश पुलिस का कार्यवाहक डीजीपी बनाया है. बीते 1 साल से उत्तर प्रदेश में कार्यवाहक डीजीपी से ही काम चलाया जा रहा है. आखिर क्यों देश के सबसे बड़े राज्य की सबसे बड़ी पुलिस फोर्स को पूर्णकालिक डीजीपी नहीं मिल पा रहा है, क्या है इसकी इनसाइड स्टोरी.
1988 बैच के IPS डीजी विजिलेंस विजय कुमार को यूपी पुलिस का तीसरा कार्यवाहक डीजीपी बनाया गया है. विजय कुमार का जनवरी 2024 में रिटायरमेंट है, यानी अगले 8 महीने भी उत्तर प्रदेश में कार्यवाहक डीजीपी से ही काम चलाया जाएगा. यह पहली बार होगा जब 20 महीनों के अंतराल में उत्तर प्रदेश में कोई पूर्णकालिक डीजीपी नहीं होगा.
ओपी सिंह के रिटायरमेंट के बाद 1987 बैच के आईपीएस मुकुल गोयल को पूर्णकालिक डीजीपी बनाया गया था. वैसे तो मुकुल गोयल का फरवरी 2024 तक रिटायरमेंट है, लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने अचानक 11 मई 2022 को मुकुल गोयल की कार्य प्रणाली पर सवाल खड़े करते हुए डीजीपी के पद से हटा दिया था. मुकुल गोयल के बाद डीजी इंटेलीजेंस डीएस चौहान को कार्यवाहक डीजीपी बनाया गया. डीएस चौहान का मार्च 2023 में रिटायरमेंट हुआ, तो आरके विश्वकर्मा को कार्यवाहक डीजीपी बनाया गया. आज 31 मई को आरके विश्वकर्मा का रिटायरमेंट है, तो विजय कुमार को कार्यवाहक डीजीपी बनाया गया है.
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सीएम योगी को एक भरोसेमंद डीजीपी की तलाश
दरअसल, ओपी सिंह के बाद सीएम योगी को एक भरोसेमंद डीजीपी की तलाश थी. लेकिन ओपी सिंह के रिटायरमेंट के बाद सीएम योगी के भरोसेमंद अफसरों की लिस्ट में डीएस चौहान का नाम था, लेकिन डीएस चौहान ओपी सिंह के रिटायरमेंट के बाद आईपीएस की सीनियरिटी लिस्ट में नीचे थे. डीएस चौहान से पहले आरपी सिंह, जीएल मीना और आरके विश्वकर्मा का नाम था. सरकार ने मई में डीएस चौहान को कार्यवाहक डीजीपी बनाने के बाद सितंबर तक इंतजार किया और सितंबर के पहले सप्ताह में प्रदेश सरकार की तरफ से केंद्रीय गृह मंत्रालय को आईपीएस अफसरों का पैनल भेजा.
DS चौहान डीजीपी की रेस से क्यों हुए थे बाहर?
नियम है कि जिस आईपीएस का सेवाकाल 6 महीने से कम का बचा होगा, वह डीजीपी के पैनल में शामिल नहीं होगा. लिहाजा सितंबर के भेजे पैनल में आरपी सिंह, बीएल मीना रेस से बाहर हो गए और डीएस चौहान तीन सीनियर मोस्ट की आईपीएस लिस्ट में आ गए. लेकिन अक्टूबर के आखिरी सप्ताह में डीओपीटी ने डीजीपी का पैनल तय करने के बजाए उत्तर प्रदेश सरकार से सवाल कर लिया कि मुकुल गोयल को क्यों हटाया गया? डीओपीटी के इस सवाल का उत्तर प्रदेश सरकार ने जवाब तो भेज दिया, लेकिन तब तक डीएस चौहान डीजीपी की रेस से बाहर हो गए. क्योंकि डीएस चौहान का मार्च 2023 में रिटायरमेंट था. जो 6 महीने से कम था. नियम है डीजीपी के पैनल के लिए भेजी गई लिस्ट में अगर कुछ अफसर रिटायर हो जाते हैं, तो सीनियारिटी लिस्ट के हिसाब से सरकार को दोबारा पैनल भेजना होगा, जो उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से भेजा ही नहीं गया. जिसके बाद डीएस चौहान, आरके विश्वकर्मा और अब विजय कुमार को कार्यवाहक बीजेपी बनाकर काम चलाया जा रहा है.
IPS मुकुल गोयल पर लगे थे ये आरोप
उत्तर प्रदेश पुलिस को पूर्णकालिक डीजीपी नहीं मिलने के पीछे गृह मंत्रालय और उत्तर प्रदेश सरकार के बीच चल रही तनातनी भी एक कारण मानी जा रही है. मुकुल गोयल की तैनाती के वक्त आरोप लगे कि वह पूर्ववर्ती समाजवादी पार्टी के करीबी अफसर हैं. मुकुल गोयल डीजीपी बनने के बाद भी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के विश्वसनीय नहीं हो पाए. मुकुल गोयल के बजाय एडीजी लॉ एंड आर्डर प्रशांत कुमार पर मुख्यमंत्री का ज्यादा भरोसा रहा.
डीएस चौहान 10 महीने तक रहे थे कार्यवाहक डीजीपी
प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव हों या फिर सार्वजनिक पूजा स्थलों से लाउडस्पीकर उतारने का फरमान, मुकुल गोयल उत्तर प्रदेश सरकार के पैमाने पर खरे नहीं उतरे. यही वजह थी कि मुकुल गोयल को शासकीय कार्यों में रुचि नहीं लेने और अकर्मण्यता का आरोप लगाकर हटाया गया. मुकुल गोयल के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ डीएस चौहान को डीजीपी बनाना चाहते थे, लेकिन केंद्रीय गृह मंत्रालय के अप्रूवल के बाद डीजीपी बनाए गए मुकुल गोयल को हटाने से केंद्र और राज्य सरकार के बीच तनातनी शुरू हुई, जिसका नतीजा ये हुआ कि मुकुल गोयल को हटाने की वजह पूछी गई और इस वजह का जवाब देने में 31 अक्टूबर का वक्त निकल गया. जिसके बाद डीएस चौहान को 10 महीने तक कार्यवाहक डीजीपी बनाकर रखा गया.
डीजी जेल रहे आनंद कुमार क्यों हुए लिस्ट से बाहर?
डीएस चौहान के रिटायरमेंट के बाद डीजी जेल रहे आनंद कुमार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पसंदीदा अफसरों की लिस्ट में शामिल थे. लेकिन चित्रकूट जेल में मुख्तार अंसारी के विधायक बेटे अब्बास अंसारी और उसकी पत्नी की मुलाकात में जेल कर्मियों और अफसरों के मिलीभगत का मामला उजागर हुआ. फिर फरवरी में प्रयागराज में हुई उमेश पाल की हत्या की साजिश में बरेली जेल में हुई. अशरफ और शूटरों के मुलाकात की कहानी सामने आई तो जेल विभाग और आनंद कुमार की किरकिरी होने लगी. जिसकी वजह से आनंद कुमार सीएम योगी के भरोसेमंद अफसरों के लिस्ट से बाहर हो गए.
जातिगत समीकरण साधने की कोशिश
दूसरा कारण जातिगत समीकरण भी था, जिसकी वजह से पूर्णकालिक डीजीपी की तैनाती को लेकर फैसला नहीं किया गया. मार्च में डीएस चौहान के रिटायरमेंट के बाद उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव होने थे और इस निकाय चुनाव में ओबीसी वोट बैंक को साधने की कोशिश में सरकार ने 2 महीने के लिए ही सही लेकिन आरके विश्वकर्मा को डीजीपी बना दिया. आरके विश्वकर्मा रिटायर हुए तो आनंद कुमार फिर सीनियर अफसरों की लिस्ट में शामिल थे. लेकिन आनंद कुमार को डीजीपी बनाया जाता तो उसके लिए स्पेशल डीजी लॉ एंड आर्डर प्रशांत कुमार को कुर्सी से हटाना पड़ता. वजह दोनों ही अधिकारी एक ही जाति (श्रीवास्तव) से आते हैं. वहीं आनंद कुमार को डीजीपी बनाकर सरकार को कोई भी राजनीतिक लाभ नहीं हो रहा था.
IPS विजय कुमार को कार्यवाहक DGP बनाने की ये है वजह?
आज तीसरे कार्यवाहक डीजीपी के तौर पर विजय कुमार से सरकार ने फिर राजनैतिक वोट बैंक साधने की कोशिश की है. विजय कुमार दलित अधिकारी हैं. 2024 में लोकसभा चुनाव होने हैं और 8 महीने के कार्यकाल में विजय कुमार, एक दलित अधिकारी को उत्तर प्रदेश पुलिस का मुखिया बनाकर बीजेपी दलित वोट बैंक को मजबूती से अपने पाले में करने की कोशिश करेगी. लिहाजा एक तरफ भरोसेमंद अफसर का ना मिलना और दूसरा राजनैतिक वोट बैंक को साधने की कोशिश में यूपी पुलिस को जनवरी 2024 यानी तक कार्यवाहक डीजीपी से ही काम चलाना पड़ेगा.