दिनेश नारायणन: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में केरल का दौरा किया. वहां पीएम ने विभिन्न चर्च के शीर्ष पुजारियों से मुलाकात की. अपने दो दिवसीय दौरे पर प्रधानमंत्री चर्च के आठ शीर्ष पादरियों से मिले. इस मुलाकात के जरिए भाजपा को 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले दक्षिणी राज्य में प्रभावशाली अल्पसंख्यक समुदाय तक अपनी पहुंच बनाने में मदद मिल सकती है. केरल में बीजेपी का झुकाव ईसाइयों की तरफ है. आखिर क्यों भाजपा को ईसाइयों की जरूरत पड़ रही है. आइए समझते हैं.
पिछले महीने नागालैंड, मेघालय सहित तीन पूर्वोत्तर राज्यों के चुनावों में भाजपा के प्रदर्शन से उत्साहित प्रधानमंत्री ने घोषणा की थी कि पार्टी के नेतृत्व वाला गठबंधन आने वाले समय में केरल में भी सरकार बनाएगी.
पीएम ने वंदे भारत एक्सप्रेस की सौगात दी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ईस्टर पर ईसाई समुदाय तक पहुंच और केरल के बिशपों के साथ बैठक को उनकी अपनी शर्तों पर एक सोची समझी राजनीतिक पहल के रूप में देखा जा सकता है. इसके अलावा पीएम ने हाल ही में केरल को वंदे भारत एक्सप्रेस की सौगात दी है. ये भी चुनावी समर को देखते हुए मास्टर स्ट्रोक कहा जा सकता है. इससे राज्य के लोगों के साथ पीएम के भावनात्मक जुड़ाव में मदद मिलेगी. केरल वासियों के लिए ट्रेन जीवन रेखा थी. जब 1960 और 70 के दशक में बॉम्बे और दिल्ली के महानगरों में रोजगार की तलाश में मलयालम लोग अपना राज्य छोड़कर चले गए थे.
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क्या है रेल की कहानी
केरल को साल-दर-साल रेल कनेक्टिविटी की अपनी मांग पर निराशा हाथ लगी है. जब-जब मांग की गई, दिल्ली से इसे नजरअंदाज कर दिया गया. पिछले साल, एक प्रमुख मलयालम दैनिक ने केरल के रेलवे के सौतेले व्यवहार पर एक तीखा संपादकीय लिखा था, बावजूद इसके नागरिकों ने ट्रांसपोर्टर के खजाने में भारी योगदान दिया था. स्पैनिश मदद से निर्मित, वंदे भारत (VB) सेमी-हाई स्पीड ट्रेनें लंबी दूरी के लिए बेहतरीन ट्रेन है.
वंदे भारत एक्सप्रेस केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम और कासरगोड की उत्तरी सीमा के बीच 586 किलोमीटर की दूरी आठ घंटे में तय करेगी. जो अन्य ट्रेनों के मौजूदा समय से तीन घंटे कम है. मोदी ने अपने केरल दौरे पर 1500 करोड़ रुपये के डिजिटल साइंस पार्क का भी अनावरण किया, जो देश का पहला ऐसा सेंटर है जो इनोवेशन पर केंद्रित है.
वर्षों से मोदी की भारतीय जनता पार्टी की केरल में राजनीतिक रणनीति अनुमानित और अकल्पनीय रही है. पीएम मोदी अक्सर कुछ चौंकाने वाला कर जाते हैं. सियासत के फायदे की बात करें तो भाजपा केरल में भारतीय धर्म जन सेना के साथ जुड़कर अपना वोट शेयर बढ़ाने में कामयाब रही है.
वोट का बंटवारा
भाजपा का हिंदू वोट केरल में कांग्रेस और सीपीआई (एम) के बीच बंटा हुआ है. जबकि उच्च जाति के नायर समुदाय बड़े पैमाने पर कांग्रेस पार्टी का समर्थन करते हैं, ओबीसी एझावा सीपीआई (एम) का समर्थन करते हैं. मुस्लिम वोट मध्य और दक्षिणी केरल में कांग्रेस और उत्तर में मुस्लिम लीग के बीच विभाजित है. केंद्रीय जिलों में ईसाई मतदाताओं ने भारी संख्या में केरल कांग्रेस (जिसमें कई गुट हैं) और गठबंधन दलों को चुना है.
हालांकि बीजेपी केरल में पहले भी मौलवियों के साथ बातचीत कर चुकी है, लेकिन वह वोटरों को रिझाने में नाकाम रही थी. ऐसा इसलिए है क्योंकि वादे अस्पष्ट रहे हैं. 2019 के चुनावों से पहले, अल्फोंस कन्ननथानम के नेतृत्व वाले पर्यटन मंत्रालय ने केरल में चर्चों के नवीनीकरण के लिए एक प्रचार योजना के तहत नकद राशि दी. जहां ईसाई मतदाताओं ने इसकी निंदा की और लेन-देन के रूप में देखा. वहीं हिंदू मतदाताओं ने इसे तुष्टिकरण बताया.
मुस्लिम फैक्टर
संघ परिवार हमेशा मुसलमानों, ईसाइयों और कम्युनिस्टों का विरोधी रहा है, वहीं केरल के ईसाई भी मुस्लिम समुदाय की बढ़ती आर्थिक और राजनीतिक ताकत के खिलाफ हैं. सत्तारूढ़ सीपीआई (एम) सक्रिय रूप से वोटर को लुभा रही है, यह बीजेपी के लिए चिंता की बात है. केरल में लव जिहाद का मुद्दा भी हावी है.
(दिनेश नारायणन द सिग्नल के सह-संस्थापक और संपादक हैं और आरएसएस एंड द मेकिंग ऑफ द डीप नेशन के लेखक हैं.)