केंद्र बनाम दिल्ली: अध्यादेश क्या होता है, कौन ला सकता है? जानें

अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग पर दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार में तनातनी जारी है. केंद्र सरकार एक अध्यादेश लेकर आई है, जिसके तहत अफसरों की ट्रांसफर और पोस्टिंग का अधिकार उपराज्यपाल को वापस मिल गया है.

आम आदमी पार्टी ने इस अध्यादेश को ‘असंवैधानिक’ बताया है. साथ ही केंद्र सरकार पर दिल्ली सरकार से पावर ‘छिनने’ का आरोप लगाया है. 

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा, ‘केंद्र का ये अध्यादेश असंवैधानिक और लोकतंत्र के खिलाफ है. हम इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएंगे. जैसे ही सुप्रीम कोर्ट बंद हुआ, उसके कुछ घंटे बाद ही केंद्र सरकार ये अध्यादेश लेकर आ गई.’

सीएम केजरीवाल ने इस अध्यादेश को सीधे तौर पर सुप्रीम कोर्ट की अवमानना बताया. उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार उनके कामकाज में बाधा डालना चाहती है. 

अध्यादेश क्या होता है?

– अध्यादेश असल में कम समय के लिए बनाया गया कानून होता है. इस कानून के लिए सरकार को उस समय संसद की इजाजत नहीं लेनी पड़ती है. हालांकि इस कानून को बाद में संसद की मंजूरी लेनी पड़ती है. केंद्रीय कैबिनेट की सलाह पर राष्ट्रपति अनुच्छेद 123 के तहत अध्यादेश जारी कर सकते हैं. राष्ट्रपति के दस्तखत के बाद अध्यादेश कानून बन जाता है. 

– अगर संसद का सत्र न चल रहा हो और किसी विषय पर कानून बनाने की जरुरत हो तब केंद्र सरकार अध्यादेश ला सकती है. 6 महीने के अंदर विधायिका से पास न होने पर इस अध्यादेश का प्रभाव स्वत: समाप्त हो जाता है. अगर अनिवार्य स्थिति हो तो अगले छः महीने के लिए इस अध्यादेश का नवीनीकरण भी किया जा सकता है. 

– चूंकि, कानून बनाने का अधिकार संसद का है. इसलिए अध्यादेश को संसद के दोनों सदनों से पास कराना जरूरी है. 

– दिल्ली के मामले में केंद्र सरकार अब अध्यादेश लेकर आई है, इसलिए इसे मॉनसून सत्र में पास करवाना जरूरी है. अगर ये अध्यादेश संसद के दोनों सदनों से पास नहीं होता है तो फिर इस अध्यादेश का प्रभाव स्वत: समाप्त हो जाएगा.

राज्यों में राज्यपाल जारी करते हैं अध्यादेश

– इसी तरह से राज्यों में राज्यपाल अध्यादेश पर हस्ताक्षर करते हैं. इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 213 में प्रावधान किया गया है. राज्यों में भी अध्यादेश तभी लाया जाता है जब विधानसभा न चल रही हो और 6 महीने के भीतर विधानसभा में पास कराना जरूरी होता है. 

कोर्ट कर सकती है खारिज

– इतना ही नहीं, कानून की तरह ही अध्यादेश को भी कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है. कोर्ट में सरकार को अध्यादेश लाने की ठोस वजह बतानी पड़ती है. अगर कोर्ट सरकार से सहमत नहीं होती है तो वो अध्यादेश को रद्द या खारिज भी कर सकती है.

दिल्ली अध्यादेश की जरुरत क्यों?

– 11 मई को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि दिल्ली की नौकरशाही पर चुनी हुई सरकार का ही कंट्रोल है और अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग पर भी अधिकार भी उसी का है.

– प्रशासनिक सेवाओं के नियंत्रण और अधिकार से जुड़े मामले पर फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, दिल्ली की पुलिस, जमीन और पब्लिक ऑर्डर पर केंद्र का अधिकार है, लेकिन बाकी सभी मामलों पर चुनी हुई सरकार का ही अधिकार होगा. 

– सुप्रीम कोर्ट ने ये भी साफ कर दिया है कि पुलिस, जमीन और पब्लिक ऑर्डर को छोड़कर बाकी सभी दूसरे मसलों पर उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार की सलाह माननी होगी. 

केंद्र का अध्यादेश क्या है?

– केंद्र सरकार 19 मई को अध्यादेश लेकर आई थी. इसका नाम ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (संशोधन) अध्यादेश, 2023’ है. 

– चूंकि, अभी संसद नहीं चल रही है, इसलिए केंद्र सरकार ये अध्यादेश लेकर आई है. नियम के तहत, 6 महीने के अंदर इस अध्यादेश को संसद के दोनों सदनों में पास कराना होगा, तब जाकर ये स्थायी कानून बनेगा.

– अध्यादेश के तहत, अधिकारियों की ट्रांसफर और पोस्टिंग से जुड़ा आखिरी फैसला लेने का हक फिर से उपराज्यपाल को दे दिया गया है.

– इसके तहत, दिल्ली में सेवा दे रहे ‘दानिक्स’ कैडर के ग्रुप-A अफसरों के ट्रांसफर-पोस्टिंग और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए एक अथॉरिटी का गठन किया जाएगा. दानिक्स यानी दिल्ली, अंडमान-निकोबार, लक्षद्वीप, दमन एंड दीव, दादरा एंड नागर हवेली सिविल सर्विसेस.

– इस अथॉरिटी में तीन सदस्य- दिल्ली के मुख्यमंत्री, दिल्ली के मुख्य सचिव और दिल्ली के गृह प्रधान सचिव होंगे. इस अथॉरिटी के अध्यक्ष दिल्ली के मुख्यमंत्री होंगे. 

– अथॉरिटी को सभी ग्रुप-A और दानिक्स के अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग और नियुक्ति से जुड़े फैसले लेने का अधिकार होगा, लेकिन इस पर आखिरी मुहर उपराज्यपाल की होगी.

– अगर उपराज्यपाल अथॉरिटी के फैसले से सहमत नहीं होते हैं तो वो इसे बदलाव के लिए लौटा भी सकते हैं. फिर भी मतभेद रहता है तो आखिरी फैसला उपराज्यपाल का ही होगा.

अध्यादेश लाने पर सरकार के क्या हैं तर्क?

– केंद्र सरकार की ओर से लाए गए इस अध्यादेश का बीजेपी ने बचाव किया है. बीजेपी ने आरोप लगाया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आड़ में दिल्ली सरकार अधिकारियों को ‘धमका’ रही है और अपनी शक्तियों का ‘दुरुपयोग’ कर रही है.

– दिल्ली बीजेपी के अध्यश्र वीरेंद्र सचदेवा ने कहा कि दिल्ली की गरिमा बनाए रखने और लोगों के हितों की रक्षा के लिए अध्यादेश लाना जरूरी था.

– सचदेवा ने कहा कि दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी है और यहां जो कुछ भी होता है, उसका असर देश और दुनिया पर पड़ता है.

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