मोहाली के गांव कुब्बाहेड़ी के 8 शहीदों की कहानी:फर्स्ट वर्ल्डवॉर में 44 जवानों ने लिया था हिस्सा; खेत में पानी छोड़ पाक फौज को रोका था

देवाशीष बोस, चंडीगढ़3 दिन पहले

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फर्स्ट वर्ल्ड वॉर का पत्थर और स्कूल में लगी शहीदों की फोटो। - Dainik Bhaskar

फर्स्ट वर्ल्ड वॉर का पत्थर और स्कूल में लगी शहीदों की फोटो।

चंडीगढ़ से मुल्लांपुर को पार करेंगे तो करीब 30 किलोमीटर दूर आएगा डिस्ट्रिक्ट मोहाली का यह गांव कुब्बाहेड़ी। 278 मकानों के इस गांव में 1438 लोग रहते हैं। गांव के बीच 1961 में बनी एक इमारत है, जो कभी धर्मशाला होती थी।

इसकी दीवार पर संगमरमर का एक पत्थर लगा है, लिखा है- इस गांव के 44 बाशिंदों ने 1914 से 1919 के बीच ग्रेट वॉर (फर्स्ट वर्ल्ड वॉर) में हिस्सा लिया, जिनमें से 2 शहीद हो गए। 65-85 की उम्र के ये बुजुर्ग बचपन से यह पत्थर देखते आए हैं, लेकिन वो 44 जांबाज कौन थे, ये कोई बता नहीं पाया। इसी गांव से थे, कोई तो जानता होगा? उन परिवारों में से आज की पीढ़ी में कोई तो होगा? इसके जवाब में खामोशी ही मिली।

दशकों पुरानी यादों से वक्त की चादर हटाते हुए 67 साल के दलबारा सिंह कहते हैं- जो पहली जंग में शहीद हुए, उनके नाम थे मनसा और शारदा। हालांकि कोई और इन नामों की तस्दीक नहीं करता। 78 साल के गुरदेव सिंह, जो खुद बंगाल इंजीनियर्स में सिपाही रहे और 1976 में रिटायर हुए, कहते हैं- यह पत्थर तो तब से लगा है जब यहां चूने की दीवार होती थी। अब इसके सामने डिस्पेंसरी भी बन गई है, जहां हमेशा ही दवाओं की किल्लत रहती है।

मोहाली के कुब्बाहेड़ी गांव में शहीदों पर चर्चा करते ग्रामीण।

मोहाली के कुब्बाहेड़ी गांव में शहीदों पर चर्चा करते ग्रामीण।

गुरदेव सिंह बोले- खेतों में पानी छोड़ पाक फौज को रोका था

अपने गुजरे दिनों को फिर से जीते हुए गुरदेव बताते हैं- मुल्लाकोट में खेतों में पानी छोड़कर पाकिस्तानी फौज को रोकना, नाथूला में सिक्किम चीन बॉर्डर पर डाकिये की कहानी, जो 10 मिनट में सीमा पार से न लौटे तो जासूस मान लिया जाता था। गुरदेव को मौजूदा दौर में लाते हुए एयरफोर्स से सार्जेंट रिटायर हुए 76 साल के हरबंस सिंह कहते हैं- इस गांव में 8 शहीद हैं, फर्स्ट वर्ल्ड वॉर से कारगिल तक। एक वक्त था जब गांव के हर घर से हर जवान बंदा फौज में था।

फौज में भर्ती के लिए तब अंग्रेजों की एक ही शर्त थी- लंबे-तगड़े जवान चाहिए, जो डेयरिंग फैसले ले सकें। मैंने खुद 1971 की जंग लड़ी, बतौर टेक्नीशियन, जहाज तैयार करते भेजते थे। हमारे लिए जंग जंग नहीं थी, ब्याह वरगा माहौल होता था। हरबंस को वो दिन भी याद हैं जब स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा और रवीश मल्होत्रा अंतरिक्ष में जाने के लिए बंगलौर में ट्रेनिंग करते थे। उन्होंने निर्मलजीत सेखों की कहानी भी सुनाई, जिन्होंने पाकिस्तानी सैबर जेट्स को अपने नैट से मार गिराया था।

धोती पहन कर लिया गया था एक्शन

1971 की लड़ाई में 12 हंटर एयरक्राफ्ट्स की ढाका की हवाईपट्‌टी पर कारपेट बॉम्बिंग, मुक्तिबाहिनी के साथ धोती पहने भारतीय फौज का एक्शन, ताकि पहचान न हो… ये सब यादें ताजा हो गईं। इनके पिता, ससुर और ससुर के तीन भाई फौज में थे। फौजियों का ये गांव, ढेर सारी कहानियां, 8 शहीद, लेकिन अंग्रेजों के जमाने के उस पत्थर के अलावा सामने कहीं कुछ नजर नहीं आता। पूछने पर पता चलता है कि 10वीं तक के सरकारी स्कूल में प्रिंसिपल के कमरे में शहीदों की फोटो लगी है और गांव में एक शहीद का बुत भी है। और आज की तारीख में भी गांव के 5 जवान फौज में हैं।

गांव के किसान भोला ने बाजू पर पिता गुरदेव सिंह का टैटू बनवा रखा है, जिन्हें 65 की जंग में लगे जख्म के कारण कैंसर हो गया था। फौजियों के इस गांव के बाशिंदे कहते हैं- सरकार किसी की भी रही हो किसी ने इस गांव को वो दर्जा नहीं दिया जो इसे मिलना चाहिए था। सरपंच गुरदेव सिंह चाहते हैं कि स्कूल में ही शहीदों के नाम का स्मारक लग जाए, जो युवाओं को प्रेरित करता रहे। स्कूल भी 10वीं से अपग्रेड होकर 12वीं तक हो जाए। फिल्मों और गानों की शूटिंग तो यहा आए दिन होती रहती है, लेकिन इस गांव के 100 साल से ज्यादा पुराने इतिहास को खुद इस गांव के नौजवान भी नहीं जानते। इससे पहले की ये कहानियां वक्त की गर्त में हमेशा के लिए गुम हो जाएं… इन्हें संजो लेना चाहिए… जय हिंद।

जो कहानी इस गांव को याद है

हवलदार बिक्रमजीत सिंह– टाइगर हिल पर भारतीय सेना जंग जीत चुकी थी। चोटी पर हवलदार बिक्रमजीत सिंह तिरंगा फहराने आगे बढ़े। उन्हें आभास नहीं था कि दुश्मन का घायल जवान वहीं पड़ा है, उसने गोली चला दी। बिक्रमजीत का 23 साल का बेटा गगनप्रीत सिख रेजिमेंट में है।

सिपाही सुखप्रीत सिंह– सुखप्रीत बिक्रमजीत के ही कजन थे। जंग के दौरान के दौरान दोनों ओर से गोलियां चलीं, लेकिन गोलियों की बौछार में सुखप्रीत के पेट पर गोलियां लगीं। इसके बाद भी वह करीब डेढ़ किमी. चलकर सुरक्षित स्थान तक पहुंचे, लेकिन ज्यादा खून बहने से शहीद हो गए।

ये हैं शहीद फर्स्ट वर्ल्ड वॉर के शहीद

मनसा और शारदा (फोटो में नहीं) 1962 की जंग, सिपाही गुरदेव सिंह और सिपाही अजायब सिंह 1964, सूबेदार अमर सिंह कारगिल, हवलदार बिक्रमजीत सिंह और सिपाही सुखप्रीत सिंह 1988, हवलदार परमजीत सिंह (आतंकवाद के दौर में शहीद हुए)।

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