पहलवानों का दर्द:बृजभूषण के खिलाफ एफआईआर के खुलासे के बाद भी आँख खुलेगी या नहीं?
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भास्कर ओपिनियनपहलवानों का दर्द:बृजभूषण के खिलाफ एफआईआर के खुलासे के बाद भी आँख खुलेगी या नहीं?

महिला पहलवान कोई राजनीतिक पार्टी तो नहीं है। वे किसी राजनीतिक दल की प्रत्याशी भी नहीं हैं। फिर उनकी एफआईआर पर कार्रवाई में इतनी देरी क्यों? आख़िर सरकार और उसके अधीन आने वाले खेल संगठन क्या चाहते हैं? क्यों जो कर्ता- धर्ता हैं, वे केवल आरोपी की बात सुन रहे हैं, महिला पहलवानों के आंसू उन्हें दिखते क्यों नहीं?

पहलवानों द्वारा 28 मई को दर्ज कराई गई एफआईआर का खुलासा हुआ तो सरकार ने या सरकार आधारित संगठन ने केवल इतना किया कि 5 जून को होने वाली बृजभूषण शरण सिंह की रैली रोक दी है, बस। … कि मामला अभी ठण्डा होने दो। … कि आरोपों की तीव्रता जरा धीमी पड़ने दो!

बृजभूषण जो कुश्ती संघ के अध्यक्ष थे, उनके ख़िलाफ़ दो एफआईआर की गई हैं। एक बालिग़ पहलवानों द्वारा। दूसरी नाबालिग पहलवान के पिता द्वारा कराई गई है। एफआईआर में लगाए गए आरोप ऐसे हैं कि कोई भी शर्म से झुक जाए, लेकिन सरकार और उसके अफ़सरों को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ रहा है।

28 मई को दिल्ली में नई संसद के सामने पहलवानों ने प्रदर्शन किया। इस दौरान बजरंग पूनिया समेत कई पहलवानों को हिरासत में लिया गया। बजरंग को रविवार देर रात छोड़ा गया।

28 मई को दिल्ली में नई संसद के सामने पहलवानों ने प्रदर्शन किया। इस दौरान बजरंग पूनिया समेत कई पहलवानों को हिरासत में लिया गया। बजरंग को रविवार देर रात छोड़ा गया।

पॉस्को की धारा लगी हुई है फिर भी कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। महिला पहलवानों ने एफआईआर में कहा है- उसने हमें फ़ोटो खिंचाने के नाम पर दबोचा। उसने उन्हें इलाज का खर्ज उठाने के नाम पर भींच लिया। उसने कभी करिअर ख़राब करने के नाम पर धमकाया और फ़ायदा उठाना चाहा। उसने कभी साँसें चैक करने के नाम पर टी शर्ट उतरवा दी। कभी विदेश दौरों के दौरान। कभी डब्ल्यूएफआई के दफ़्तर में, तो कभी देश में हुए खेलों के दौरान। सन् 2012 से 2022 तक यह सब होता रहा लेकिन आरोपी को कभी शर्म नहीं आई। और किसी को तो पता ही नहीं था, इसलिए किसी और को दोष देना उस वक्त के लिए तो ठीक नहीं है।

28 मई को प्रदर्शन के दौरान पहलवान साक्षी मलिक को महिला पुलिस कर्मी उठाकर अपने साथ ले गईं। बाद में उन्हें छोड़ दिया गया।

28 मई को प्रदर्शन के दौरान पहलवान साक्षी मलिक को महिला पुलिस कर्मी उठाकर अपने साथ ले गईं। बाद में उन्हें छोड़ दिया गया।

महिला पहलवान अपना करिअर बर्बाद होने से बचाने के लिए यह सब सहती रहीं, अपना मुँह सिले रहीं। जब अति हो गई तब जाकर उन्होंने इस आरोपी के खिलाफ मोर्चा खोला। अब इसमें भी कोई राजनीति देखे, या कोई गुटीय प्रतिद्वंद्विता तलाशे तो यह हद है! महिलाओं को हर फ़ील्ड में आगे बढ़ाने का संकल्प लेने वाले इस देश में आख़िर यह क्या हो रहा है? कोई जवाब देने को तैयार नहीं। कोई सुनने को ख़ाली नहीं।

आरोपी बृजभूषण खुला घूम रहा है। दबंगई के साथ यहाँ- वहाँ भाषण देता फिर रहा है। कोई उसे रोकता नहीं। कोई उसे टोकता नहीं। कहते हैं उत्तरप्रदेश में उसका बड़ा दबदबा है। कोई सरकार उससे बैर लेना नहीं चाहती। क्या वह शासन से बड़ा है? क्या वह सरकार से भी बड़ा है। आख़िर वह कितना बड़ा है? निष्पक्ष जाँच तक नहीं हो रही है। छोटी- मोटी जाँच हुई भी तो उसके दौरान भी उल्टे पहलवानों को ही धमकाया गया या उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया।

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