असम-अरुणाचल के बीच अंर्तराज्यीय सीमा विवाद सुलझा:दिल्ली में शाह के सामने दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री ने समझौते पर साइन किए
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असम-अरुणाचल के बीच अंर्तराज्यीय सीमा विवाद सुलझा:दिल्ली में शाह के सामने दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री ने समझौते पर साइन किए

नई दिल्ली2 महीने पहले

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असम और अरुणाचल प्रदेश के बीच लंबे समय से चल रहे अंर्तराज्यीय सीमा विवाद को सुलझा लिया है। गुरुवार को असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा और अरुणाचल के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह की उपस्थिति में एक समझौते मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग (MoU) पर साइन किए।

इस दौरान अमित शाह ने कहा कि समाधान के लिए समझौते पर हस्ताक्षर होना एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। आज हमने एक विकसित, शांतिपूर्ण और संघर्ष-मुक्त पूर्वोत्तर की स्थापना के लिए मील का पत्थर पार कर लिया है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, मुख्यमंत्री सरमा की अध्यक्षता में गुवाहाटी में राज्य मंत्रिमंडल की बैठक के दौरान यह फैसला लिया गया था।

असम और अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री ने अमित शाह की मौजूदगी में समझौते पर साइन किए।

असम और अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री ने अमित शाह की मौजूदगी में समझौते पर साइन किए।

2022 में असम और मेघालय सीमा विवाद सुलझा था
इससे पहले मार्च 2022 में असम और मेघालय सरकार ने 50 साल पुराने सीमा विवाद को समझौते पर हस्ताक्षर कर सुलझाया था।

1972 से शुरू हुआ था असम-अरुणाचल अंर्तराज्यीय सीमा विवाद
1979 से असम के 1,000 वर्ग किमी मैदानी क्षेत्र पर अरुणाचल प्रदेश दावा करता था। अरुणाचल और असम के बीच 804.1 किमी लंबा बॉर्डर है। 1972 में असम से अलग होकर अरुणाचल राज्य बना। 1972 और 1979 के बीच 396 किमी बॉर्डर तय हो गया था, पर सर्वे को लेकर विवाद हुआ और काम अटक गया। 1951 के एक नोटिफिकेशन को लागू किया गया था, जिसे अरुणाचल स्वीकार नहीं कर रहा था।

1951 में केंद्र सरकार ने बोरदोलोई कमेटी बनाई थी। इस कमेटी ने 3,648 किमी मैदानी इलाकों (आज का दरांग, धेमाजी और जोनोई जिले) को असम में ट्रांसफर करने का सुझाव दिया था। अरुणाचल का कहना है कि इस प्रक्रिया में उसकी राय नहीं ली गई। जिन मैदानी इलाकों को असम को दिया गया है, वहां अरुणाचल के लोग रहते हैं और उनके कस्टम और ट्रेडिशनल राइट्स इन इलाकों पर हैं। क्षेत्र के अहोम रूलर्स ने भी इसे मान्यता दी थी।

कई बार समाधान की कोशिशें पहले भी की गईं
1979 में दोनों सरकारों ने एक संयुक्त कमेटी बनाई थी, पर कोई हल नहीं निकला। 1983 में अरुणाचल ने असम को प्रस्ताव भेजकर 956 वर्ग किमी जमीन मांगी। 1989 में असम सरकार ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में सिविल मुकदमा दाखिल किया।

2007 में तरुण चटर्जी कमीशन के सामने अरुणाचल ने प्रपोजल में 956 वर्ग किमी से बढ़ाकर 1,119.2 वर्ग किमी क्षेत्र पर दावा किया। 2009 में असम ने यह दावा खारिज कर दिया। कहा जाता है कि चटर्जी कमीशन ने अरुणाचल के 70%-80% क्लेम को स्वीकार किया था। इसके बाद 2005 से 2014 के बीच दोनों राज्यों में तनाव रहा और हिंसा भी हुई थी।

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