यूपी में 16 बड़े नेताओं पर हमले की कहानी:50% मारे गए, योगी-मुलायम बाल-बाल बचे; जिन्होंने गोली मारी वह सांसद-विधायक तक बने

लखनऊएक दिन पहलेलेखक: राजेश साहू

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भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद पर 28 जून को हमला हुआ। गोली उनके कमर को छूती हुई गाड़ी की सीट के आर-पार हो गई। अगले दिन पुलिस ने सहारनपुर से हमले में इस्तेमाल स्विफ्ट कार बरामद कर ली। हमलावर पुलिस की पकड़ में हैं। यह पहला मौका नहीं है, जब नेताओं पर दिनदहाड़े हमला हुआ। इसके पहले भी नेताओं के काफिले पर ताबड़तोड़ फायरिंग हुई है। जिनकी किस्मत अच्छी थी वह बच गए, जिनके दिन बुरे निकले उनके शरीर से 19 गोलियां निकलीं।

नेताओं पर फायरिंग कभी वर्चस्व को स्थापित करने के लिए तो कभी समाज में डर पैदा करने के लिए हुई। जिन्होंने फायरिंग की वह सांसद-विधायक तक बने। जिनपर फायरिंग हुई वह भी मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक बने। आज की स्टोरी में हम उन्हीं फायरिंग की घटनाओं के बारे में जानेंगे। सबसे पहले उस घटना की बात, जिसकी वजह से हम आज आपको यह सब बता रहे हैं…

28 जून को चंद्रशेखर पर हमला हुआ था। गोली चंद्रशेखर के कमर को छूकर निकल गई थी।

28 जून को चंद्रशेखर पर हमला हुआ था। गोली चंद्रशेखर के कमर को छूकर निकल गई थी।

चंद्रशेखर दाएं घूमे इसलिए बच गए
भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर बुधवार शाम अपने वकील दोस्त अजय की मां को श्रद्धांजलि देने देवबंद पहुंचे थे। दो दिन पहले ही अजय की मां का निधन हुआ था। चंद्रशेखर वहां से निकलकर गाड़ी में बैठे ही थे कि पीछे से HR-70D 0278 नंबर की स्विफ्ट कार आई। कार में कुल चार लोग थे। चंद्रशेखर की फॉर्चूनर पर फायरिंग कर दी। अचानक हुई फायरिंग से बचने के लिए चंद्रशेखर बाएं घूम गए। एक गोली गाड़ी के गेट को चीरते हुए चंद्रशेखर के कमर को छूकर सीट के आर-पार हो गई। इसके बाद 3 और गोलियां चलीं। चंद्रशेखर बच गए।

4 राउंड की फायरिंग के बाद हमलावर वहां से 7 किलोमीटर दूर मिलकपुर गांव पहुंचे। यहां गाड़ी को छोड़ा और फरार हो गए। पुलिस ने गाड़ी बरामद कर दी। नंबर के आधार पर गाड़ी किसी विकास कुमार के नाम से बताई जा रही। पुलिस ने शनिवार को इस मामले में 4 आरोपियों को हरियाणा के अंबाला से गिरफ्तार कर लिया। सारी प्लानिंग रोहतक में रची गई। यहां हमलावरों को कार दी गई। एसएसपी विपिन ताडा ने इस पूरे मामले का खुलासा किया।

चंद्रशेखर फिलहाल ठीक हैं। हॉस्पिटल से निकलने के बाद उन्होंने कहा, “मैंने कई बार गृहमंत्री, सीएम, डीजीपी और पुलिस को पत्र लिखकर बताया कि मेरे साथ इस तरह की घटना हो सकती है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। हमले में सफेदपोश और खाकी के लोग शामिल थे, जांच होने पर दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।”

  • यहां चंद्रशेखर मामले की बात खत्म होती है। सीएम योगी और मुलायम सिंह पर हुई फायरिंग से पहले अतीक-अशरफ पर हुई फायरिंग को जानते हैं। क्योंकि यह सबसे बड़ी और लेटेस्ट घटना है।

17 पुलिसकर्मियों के बीच अतीक-अशरफ की हत्या
15 अप्रैल 2023, माफिया अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ को पुलिस मेडिकल टेस्ट के लिए प्रयागराज के कॉल्विन हॉस्पिटल लेकर पहुंची थी। उन दोनों के साथ पत्रकार भी चल रहे थे। रात 10 बजकर 35 मिनट हुए थे, मीडियावालों ने गुड्डू मुस्लिम को लेकर सवाल किया। अतीक बोलने ही वाला था कि पत्रकारों के बीच से निकले लवलेश तिवारी, सनी और अरुण मौर्य ने फायरिंग कर दी। पहली गोली अतीक की कनपटी पर लगी, इसके बाद अशरफ के सिर पर। दोनों जमीन पर गिर पड़े और लगातार फायरिंग होने लगी।

20 सेकेंड के अंदर 17 राउंड फायरिंग हुई। अतीक-अशरफ जमीन पर पड़े तड़प रहे थे। सुरक्षा में लगे 17 पुलिसकर्मी दूर भाग खड़े हो गए। शूटरों ने सरेंडर-सरेंडर चिल्लाते हुए खुद को पुलिस के हवाले कर दिया। पुलिस ने तीनों से पूछताछ की। तीनों ही प्रयागराज से बाहर के मिले।

लवलेश बांदा का, सनी हमीरपुर का, अरुण कासगंज का निकला। जो हथियार बरामद हुआ उसकी कीमत 7 लाख रुपए से ज्यादा की थी। इन तीनों की परिवारिक स्थिति ऐसी नहीं जो खरीद सके। कुल मिलाकर यह कॉट्रैक्ट किलिंग का मामला नजर आया।

  • ढाई महीने बीत गए। हमने एसटीएफ चीफ अमिताभ यश से इस मामले में पूछा कि नया अपडेट क्या है। उन्होंने कहा- इस मामले में कोई नया अपडेट नहीं है।

आतंक विरोधी रैली में गए योगी के काफिले पर पेट्रोल बम से हमला हुआ
26 जुलाई 2008 की शाम 6 बजकर 45 मिनट पर अहमदाबाद के मणिनगर बाजार में बम धमाका हुआ। 2 सेकेंड में 8 जिंदा लोग लाश बन गए। इसके बाद अगले 70 मिनट में 21 धमाके हुए। हर बड़ी मार्केट में लाशें बिछ गई। जो घरों में थे वो मदद के लिए बाहर ही नहीं आए। अगले दिन लाशें गिनी गई। 56 लोगों के मौत की पुष्टि हुई। हमले की जिम्मेदारी इंडियन मुजाहिद्दीन ने ली। कहा कि गोधरा कांड का बदला लिया। कुल 80 लोग गिरफ्तार हुए। इसमें 8 आजमगढ़ से थे। बस इसीलिए योगी आदित्यनाथ आजमगढ़ पहुंचने की तैयारी में लग गए।

हमले के अगले दिन तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह घटना स्थल पर पहुंचे थे।

हमले के अगले दिन तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह घटना स्थल पर पहुंचे थे।

7 सितंबर 2008 को हिंदू युवा वाहिनी ने आजमगढ़ के डीएवी कॉलेज में आतंकवाद विरोधी रैली बुलाई। योगी आदित्यनाथ मुख्य वक्ता थे। प्रशासन ने पहले रोकने की कोशिश की, लेकिन बाद में इजाजत दे दी। आदित्यनाथ 40 गाड़ियों के काफिले के साथ आजमगढ़ रवाना हुए। PWD गेस्ट हाउस पहुंचे। योगी की गाड़ी काफिले में 7वें नंबर पर थी, लेकिन अनहोनी की आशंका थी इसलिए गाड़ी एक नंबर पर आ गई। 1 बजकर 20 मिनट पर काफिला तकिया इलाके से गुजरा तभी कुछ बाइक और गाड़ियां बराबर पर चलने लगीं। एक पत्थर काफिले में 7वें नंबर पर चल रही गाड़ी पर आकर लगा। पीछे की गाड़ियां रुक गई। आगे की सभी 6 तेजी से आगे बढ़ीं।

पीछे की गाड़ियों पर पत्थर और पेट्रोल बम चलने लगा। इसी बीच रजादेपुर मठ के महंत शिवहर्ष भारती की गाड़ी का शीशा तोड़कर चाकू मार दिया गया। भीड़ योगी आदित्यनाथ को खोज रही थी, लेकिन वह नहीं मिले। मौके पर पहुंची पुलिस ने हिंसा रोकने के लिए फायरिंग शुरू कर दी। 18 साल के मनीउल्लाह की मौत हो गई। उस वक्त मायावती की सरकार थी, उन्होंने एसपी विजय गर्ग को निलंबित कर दिया। योगी रैली में पहुंचे, अबु बशीर की गिरफ्तारी और आतंकवाद पर भाषण दिया। अपने काफिले पर हुए हमले में एक शब्द नहीं बोला।

मुलायम ने कहा- ‘नेताजी मर गए’ चिल्लाओ
4 मार्च 1984…रविवार का दिन था। मुलायम सिंह यादव इटावा और मैनपुरी में रैली के लिए गए थे। मैनपुरी में अपने एक दोस्त से मिले। मुलाकात के बाद करीब 1 किलोमीटर ही आगे चले कि गाड़ी पर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू हो गई। गोली मारने वाले छोटेलाल और नेत्रपाल नेताजी की गाड़ी के सामने कूद गए। छोटेलाल नेताजी के ही साथ चलता था इसलिए उसे पता था कि वह गाड़ी में किधर बैठे हैं। छोटेलाल ने 9 गोलियां गाड़ी के उस साइड पर चलाई जिधर नेताजी बैठते थे।

फायरिंग के बीच गाड़ी सूखे नाले में जा गिरी। नेताजी ने अपने लोगों से कहा कि चिल्लाओ की नेताजी मर गए। समर्थक चिल्लाने लगे की नेताजी की हत्या हो गई। हमलावरों को लगा कि उन्होंने मुलायम सिंह को मार दिया। वह वहां से भागने लगे। तभी पुलिस की एक गोली छोटेलाल को लगी और उसकी मौके पर ही मौत हो गई। दूसरा हमलावर नेत्रपाल पुलिस की गोली से घायल हो गया। इस हमले के बाद मुलायम सिंह की सुरक्षा बढ़ा दी गई।

यहां तक आपने योगी-मुलायम और अतीक अहमद पर हुए हमले को जाना। आगे हम 5 विधायकों की हत्या के बारे में जानते हैं। जवाहर पंडित को मारने वाले तो सांसद-विधायक तक बने।

विधायक हत्या 1ः पांच बदमाशों ने राजू के शरीर में 19 गोलियां दागीं
अतीक के भाई अशरफ को चुनाव में हराने वाले राजू पाल माफिया को खटकने लगे। 25 जनवरी 2005 को उन्हें दिनदहाड़े घेरकर गोलियां मारी गई। पूरी स्टोरी इस ग्राफिक से समझिए।

विधायक हत्या 2ः प्रेमिका के साथ जा रहे वीरेंद्र शाही को श्रीप्रकाश ने मार दिया
विधायक वीरेंद्र शाही पूर्वांचल के बाहुबलियों में गिने जाते थे। हरिशंकर तिवारी से उनकी दुश्मनी जगजाहिर थी। श्रीप्रकाश शुक्ला की वीरेंद्र शाही से सीधी दुश्मनी थी। 1997 तक उसने करीब 20 से ज्यादा हत्याएं कर दी थी। एक दिन उसे मौका मिल गया। वीरेंद्र लखनऊ के इंदिरानगर में अपनी कथित प्रेमिका को किराए पर कमरा दिखाने के लिए ले जा रहे थे। प्रेमिका के बारे में किसी को पता न चले इसलिए गनर और ड्राइवर को घर पर ही रहने को कह दिया था।

इसकी भनक श्रीप्रकाश को लग गई। श्रीप्रकाश पहुंचा और वीरेंद्र पर फायरिंग झोंक दी। मौके पर ही विधायक की मौत हो गई। इस खबर के बाद श्रीप्रकाश का इतना दबदबा बढ़ गया कि हरिशंकर तिवारी जैसे बाहुबली भी एक-एक करके रेलवे के सारे ठेके उसके लिए छोड़ने लगे।

विधायक हत्या 3ः चार लोग गाड़ी से उतरे और फायरिंग शुरू कर दी
जवाहर पंडित मुलायम सिंह के खास थे। बालू खनन को लेकर उनका विवाद करवरिया खानदान से हो गया। जिसका दुखद अंत प्रयागराज के सिविल लाइंस में हुआ। इस ग्राफिक में देखिए।

विधायक हत्या 4ः शादी में जा रहे विधायक की हत्या
10 फरवरी 1997, फर्रुखाबाद के तत्कालीन विधायक ब्रह्मदत्त द्विवेदी शहर कोतवाली क्षेत्र के एक शादी समारोह में जा रहे थे। रास्ते में गाड़ी पर फायरिंग हो गई। गनर बीके तिवारी की मौके पर ही मौत हो गई। ब्रह्मदत्त को लेकर लोग हॉस्पिटल भागे। वहां पहुंचे तो डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया। उस वक्त ब्रह्मदत्त के अंतिम संस्कार में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, कल्याण सिंह, मुरली मनोहर जोशी, राजनाथ सिंह जैसे दिग्गज नेता शामिल हुए।

मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई। 17 जुलाई 2003 को सीबीआई कोर्ट ने गैंगस्टर संजीव महेश्वरी और सपा के पूर्व विधायक विजय सिंह को उम्रकैद की सजा सुनाई। दोनों फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट पहुंचे, 2017 में कोर्ट ने उम्रकैद की सजा बरकरार रखी। 7 जून को लखनऊ कोर्ट के अंदर संजीव जीवा की गोली मारकर हत्या कर दी गई।

विधायक हत्या 5ः कृष्णानंद राय की गाड़ी के चारों तरफ से हुई थी फायरिंग
मुख्तार अंसारी नहीं चाहता था कि कोई उसके गढ़ में दूसरा कोई बढ़े। कृष्णानंद राय की जिस दिन हत्या हुई उस दिन वह बुलेट प्रूफ गाड़ी के बजाय नॉर्मल गाड़ी में थे। ग्राफिक से पूरी घटना समझिए।

  • ऊपर आपने 5 विधायकों की हत्या को देखा। अब उन हमलों की बात करते हैं, जिसमें नेता बच गए।

नंदी पर रिमोट बम से हमला लेकिन बाल-बाल बचे
12 जुलाई 2010, बीजेपी सरकार के मौजूदा मंत्री नंद गोपाल नंदी उस वक्त बीएसपी सरकार में मंत्री थे। अपने घर मुट्ठीगंज से करीब 1 किलोमीटर दूर मंदिर में पूजा करने जा रहे थे। मंदिर पहुंचकर गाड़ी से उतरे ही थे कि पास खड़ी स्कूटी में रखे बम को रिमोट से उड़ा दिया गया। धुएं का गुबार उठा।

धुआं छटा तो नंदी के बगल दो लोगों की लाश पड़ी थी। आसपास मौजूद जानवरों की मांस के हिस्से दीवार में जाकर चिपक गए। नंदी का पेट फट गया। हथेली के चीथड़े उड़ गए। अस्पताल पहुंचाया गया, 8 दिन तक उन्हें होश नहीं आया।

हमले का आरोप पूर्व विधायक विजय मिश्रा और ब्लॉक प्रमुख दिलीप मिश्रा पर लगा।

हमले का आरोप पूर्व विधायक विजय मिश्रा और ब्लॉक प्रमुख दिलीप मिश्रा पर लगा।

एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी पर 3 फरवरी 2022 को हमला हुआ। चार गोलियां चलीं, लेकिन ओवैसी बाल-बाल बच गए। मुख्तार अंसारी पर 2002 में हमला हुआ। उस वक्त वह दूसरी गाड़ी में बैठा था। रायबरेली के पूर्व कांग्रेस विधायक अखिलेश सिंह पर कई बार हमले हुए लेकिन हर बार वह बच गए। 17 नवंबर 2022 को बलिया के पूर्व विधायक राजेश मिश्रा उर्फ पप्पू भरतौल पर हमला हो गया। फायरिंग हुई लेकिन वह बच गए।

कुल मिलाकर हमने 16 नेताओं पर हमले की घटना बताई। इसमें 5 विधायक सहित 8 लोग मारे गए। 8 लोग ही बच गए। जो बचे उनमें दो मुख्यमंत्री बने, एक मंत्री और एक विधायक बने। ज्यादातर हमले सियासत के चलते हुए। लेकिन एक बात जिस पर किसी की नजर नहीं वह यह कि जिन्होंने हमला किया उसमें ज्यादातर उसी तरह से मारे गए। वो चाहे श्रीप्रकाश शुक्ला, संजीव जीवा हो या फिर विकास दुबे।

ये तो थी यूपी के बड़े नेताओं पर हुए हमले की बात। आगे कुछ कहानियां आप नीचे दिए लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं…

  • बाहुबली हरिशंकर तिवारी…जो BJP-BSP-SP सरकार में मंत्री बने

हरिशंकर तिवारी बड़हलगंज के टांडा गांव में 5 अगस्त, 1935 को पैदा हुए। परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। पिता चाहते थे कि हरिशंकर पढ़-लिखकर कुछ करें, इसलिए उन्हें पढ़ाई के लिए गोरखपुर यूनिवर्सिटी भेज दिया। उस वक्त देश में जेपी आंदोलन चल रहा था। लेकिन यूनिवर्सिटी के अंदर इसका प्रभाव नहीं था, बल्कि ब्राह्मण बनाम ठाकुर की लड़ाई चल रही थी। ठाकुर छात्रों के नेता थे बलवंत सिंह और ब्राह्मण छात्रों के मसीहा हरिशंकर तिवारी।

इन दोनों गुटों में अक्सर मारपीट होती रहती थी। इसी बीत बलवंत सिंह को वीरेंद्र प्रताप शाही के रूप में नया लड़का मिला। अपनी जाति का था। हिम्मती था। इसलिए बलवंत ने वीरेंद्र को आगे कर दिया। अब लड़ाई से बलवंत बाहर हो गए। हरिशंकर और वीरेंद्र प्रताप आमने-सामने आ गए। पढ़ें पूरी कहानी…

  • माफिया बृजेश सिंह…41 केस, किसी में दोषी नहीं

साल 1964. वाराणसी का धौरहरा गांव। किसान और स्थानीय नेता रविंद्र नाथ सिंह के घर एक लड़के का जन्म हुआ। नाम रखा अरुण सिंह। रविंद्र का सपना था कि उनका बेटा बड़ा होकर IAS बने और परिवार का नाम रोशन करे। अरुण पढ़ाई में अच्छा था। उसने अच्छे नंबरों से 12वीं पास की और B.Sc में एडमिशन ले लिया। इसके साथ ही वो IAS परीक्षा की तैयारी भी करने लगा।

अरुण को अपने पिता से बहुत लगाव था इसलिए वो उनका सपना पूरा करने के लिए जमीन आसमान एक करने को तैयार था। लेकिन फिर अरुण की जिंदगी में एक ऐसा दिन आया जिसने उसे एक होनहार स्टूडेंट से माफिया बना दिया। 27 अगस्त 1984 को गांव के 6 दबंगों ने अरुण के पिता की हत्या कर दी। अरुण इस हादसे को बर्दाश्त नहीं कर पाया और उसके सिर पर अपनी पिता की मौत का बदला लेने का खून सवार हो गया। पढ़ें पूरी कहानी…

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