बिल से पहले ही क्रेडिट की होड़, कांग्रेस ने महिला आरक्षण को बताया राजीव, सोनिया, राहुल गांधी की पहल

सूत्रों के हवाले से खबर है कि महिला आरक्षण बिल को कैबिनेट की मंजूरी मिल गई है. अब इस बिल को संसद में पेश किया जाएगा. संसद के दोनों सदनों से पारित होने के बाद बिल राष्ट्रपति के पास जाएगा. वहां से मंजूरी मिलने के बाद यह बिल कानून बन जाएगा. लेकिन अभी इस बिल को पारित होना तो छोड़िए पेश भी नहीं किया गया है. उससे पहले ही क्रेडिट लेने की जंग देखने को मिल रही है. 

जहां भाजपा सरकार इस बिल को अपने बहुमत के दम पर पारित कराना चाहती है तो वहीं कांग्रेस ने उससे पहले ही बिल को लेकर ट्वीट किया है. कांग्रेस ने एक वीडियो जारी कर इस बिल की नींव रखने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को क्रेडिट दिया. वीडियो में कांग्रेस ने आगे लिखा कि सोनिया गांधी ने भी 2011 में इस बिल को लेकर कहा था कि हमें निचले सदन से भी इस बिल को पास कराना है. वहीं आगे राहुल गांधी का भी जिक्र है. राहुल ने 2018 में कहा भी था कि हमारी कांग्रेस पार्टी इस बिल को पास कराने के लिए मोदी सरकार के साथ खड़ी है. जिस दिन सरकार ये बिल लाएगी उस दिन कांग्रेस का हर सांसद इस बिल में सरकार का समर्थन करेगा. 

Despite having a majority, PM Modi has made no effort to pass the Women’s Reservation Bill in Lok Sabha.

Congress demands immediate passage of the bill in the special session of Parliament. pic.twitter.com/i5GQJ9leZP

— Congress (@INCIndia) September 18, 2023

खबर आते ही कांग्रेस नेताओं के ट्वीट आने लगे

इसके अलावा कांग्रेस नेता पी. चिंदबरम ने ट्वीट किया कि अगर सरकार कल महिला आरक्षण विधेयक पेश करती है तो यह कांग्रेस और यूपीए सरकार में उसके सहयोगियों की जीत होगी. उन्होंने आगे लिखा कि UPA सरकार के दौरान ही यह विधेयक 9 मार्च 2010 को राज्यसभा में पारित हुआ था. 

कांग्रेस ने बताया अपनी जीत

अपने 10वें वर्ष में, भाजपा उस विधेयक को फिर से जीवित कर रही है, जिसे उसने इस उम्मीद में दबा दिया था कि विधेयक का शोर खत्म हो जाएगा. इसके विपरीत, हर अवसर पर हाल ही में हैदराबाद में सीडब्ल्यूसी में कांग्रेस ने विधेयक को संसद में पारित करने के लिए जोरदार ढंग से अनुरोध किया है. कांग्रेस नेता ने लिखा कि आशा करते हैं कि विधेयक चालू सत्र में पेश और पारित हो जाएगा. 

बिल से पहले क्रेडिट की होड़

वहीं कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने भी इस बिल को लेकर एक दिन पहले ट्वीट किया था. CWC की बैठक के बाद जयराम रमेश ने ट्वीट किया था कि कांग्रेस कार्य समिति ने मांग की है कि संसद के विशेष सत्र के दौरान महिला आरक्षण विधेयक को पारित किया जाना चाहिए. उन्होंने कुछ तथ्यों पर भी जोर डाला. 

कांग्रेस नेता के ट्वीट में लिखा है…

1. सबसे पहले राजीव गांधी ने 1989 के मई महीने में पंचायतों और नगर पालिकाओं में महिलाओं के एक तिहाई आरक्षण के लिए संविधान संशोधन विधेयक पेश किया. वह विधेयक लोकसभा में पारित हो गया था लेकिन सितंबर 1989 में राज्यसभा में पास नहीं हो सका.

2. अप्रैल 1993 में तत्कालीन प्रधान मंत्री PV नरसिम्हा राव ने पंचायतों और नगर पालिकाओं में महिलाओं के एक तिहाई आरक्षण के लिए संविधान संशोधन विधेयक को फिर से पेश किया. दोनों विधेयक पारित हुए और कानून बन गए.

3. आज पंचायतों और नगर पालिकाओं में 15 लाख से अधिक निर्वाचित महिला प्रतिनिधि हैं. यह 40% के आसपास है.

4. महिलाओं के लिए संसद और राज्यों की विधानसभाओं में एक तिहाई आरक्षण के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह संविधान संशोधन विधेयक लाए. विधेयक 9 मार्च 2010 को राज्यसभा में पारित हुआ. लेकिन लोकसभा में नहीं ले जाया जा सका.

5. राज्यसभा में पेश/पारित किए गए विधेयक समाप्त (Lapse) नहीं होते हैं. इसलिए महिला आरक्षण विधेयक अभी भी जीवित (Active) है.

कांग्रेस पार्टी पिछले नौ साल से मांग कर रही है कि महिला आरक्षण विधेयक, जो पहले ही राज्यसभा से पारित हो चुका है, उसे लोकसभा से भी पारित कराया जाना चाहिए.

भाजपा नेता के एक ट्वीट के बाद शुरू हुई चर्चा

आपको बता दें कि इस बिल को पेश किए जाने की चर्चा भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल के एक ट्वीट से शुरू हुई. इस ट्वीट में उन्होंने जैसे ही महिला आरक्षण की मांग के लिए मोदी सरकार को बधाई दी, उसी के बाद कांग्रेस नेता इस बिल को उनकी उपलब्धि बताने लगे. 

भाजपा नेता ने किया ट्वीट

बिल में क्या है?

महिला आरक्षण विधेयक में महिलाओं के लिये लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं में 33% सीटें आरक्षित करने का प्रस्ताव है. आरक्षित सीटों को राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के विभिन्न चुनावी क्षेत्रों में क्रमिक रूप से आवंटित किया जा सकता है. इस संशोधन अधिनियम के लागू होने के 15 वर्ष बाद महिलाओं के लिये सीटों का आरक्षण समाप्त हो जाएगा.

महिलाओं के आरक्षण की खिलाफत क्यों?

महिलाओं को आरक्षण दिए जाने की राह में कई अड़चने है. बिल के विरोध की पहली वजह है कि, समानता का अधिकार. दावा किया जाता है कि अगर महिला आरक्षण बिल पास होता है तो यह संविधान में दिए गए समानता के अधिकार का उल्लंघन होगा. समानता के अधिकार की गारंटी लिंग, भाषा, क्षेत्र, समुदाय आदि किसी भी भेद से परे है. एक तर्क यह भी है कि अगर महिलाओं को आरक्षण मिला तो वे योग्यता के आधार पर प्रतिस्पर्द्धा नहीं करेंगी, जिससे महिलाओं की सामाजिक स्थिति में गिरावट आ सकती है. महिलाएं कोई सजातीय समुदाय नहीं हैं, जैसे कि कोई जाति समूह, इसलिये महिलाओं के लिये जाति-आधारित आरक्षण हेतु जो तर्क दिये गए हैं, वे ठीक नहीं हैं.

विधेयक लागू होता है तो क्या होगी स्थिति?

अभी के दौर में लोकसभा में सांसदों की संख्या 543 है. इसके साथ महिला सांसदों की संख्या 78 है. फीसदी में देखा जाए तो 14 प्रतिशत. राज्यसभा में 250 में से 32 सांसद ही महिला हैं यानी 11 फीसदी. मोदी कैबिनेट में महिलाओं की हिस्सेदारी 5 फीसदी के आसपास है. अगर विधेयक लागू हो जाता है तो लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या 179 तक हो जाएगी.

वहीं विधानसभाओं की बात करें तो दिसंबर 2022 में संसद में कानून मंत्री किरेन रिजीजू ने महिलाओं की हिस्सेदारी को लेकर एक डेटा पेश किया था. इसके मुताबिक आंध्र प्रदेश, असम, गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, केरल, कर्नाटक और मध्य प्रदेश में महिला विधायकों की संख्या 1 फीसदी तो वहीं 9 राज्यों में महिला विधायकों की संख्या 10 फीसदी से भी कम है. इन राज्यों में लोकसभा की 200 से अधिक सीटें हैं. वहीं बिहार, यूपी, हरियाणा, राजस्थान, झारखंड, पश्चिम बंगाल और दिल्ली में महिला विधायकों की संख्या 10 फीसदी से अधिक लेकिन 15 फीसदी से कम है.

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