आयकर:आखिर नौकरी पेशा लोग टैक्स की मिर्ची कब तक खाते रहेंगे

भास्कर ओपिनियनआयकर:आखिर नौकरी पेशा लोग टैक्स की मिर्ची कब तक खाते रहेंगे

देश में आयकर की माया ग़ज़ब है। 140 करोड़ के देश में मात्र सवा दो करोड़ लोग टैक्स के रूप में सरकार को कोई रक़म चुका रहे हैं। एसबीआई रिसर्च की ताज़ा रिपोर्ट में कहने को इन्कम टैक्स रिटर्न भरने वाले 7.40 करोड़ लोग हैं, लेकिन इनमें से 5.16 करोड़ लोगों का कोई टैक्स ही नहीं बना। अजीब माया है- 2019-20 में करदाताओं की संख्या 3.57 करोड़ थी। 2022-23 में 1.33 करोड़ करदाता घट गए, लेकिन टैक्स कलेक्शन 3.39 लाख करोड़ से बढ़कर 11.35 करोड़ रु. हो गया!

सीधा- सा मतलब ये है कि अमीर और अमीर होता जा रहा है और गरीब आगे बढ़ नहीं पा रहा है। यही वजह है कि तीन साल पहले ज़्यादा लोग कम टैक्स दे रहे थे और अब कम लोग ज़्यादा टैक्स दे रहे हैं। रिटर्न भरने वाले लोग ज़्यादा होने का कारण यह है कि बैंक लोन और ऐसी ही अन्य सुविधाएँ पाने के लिए वे लोग भी अब रिटर्न भरने लगे हैं जो टैक्स दायरे में नहीं आते। कुछ लोग नई टैक्स प्रणाली के कारण भी टैक्स चुकाने से बच निकले हैं।

बैंक लोन पाने के लिए वे लोग भी अब रिटर्न भरने लगे हैं, जो इनकम टैक्स के दायरे में नहीं आते।

बैंक लोन पाने के लिए वे लोग भी अब रिटर्न भरने लगे हैं, जो इनकम टैक्स के दायरे में नहीं आते।

ख़ासकर, नई नौकरी पाने वाले। मजाल की बात ये है कि कॉर्पोरेट टैक्स पहले की बजाय कम हो गया है। हो सकता है ये सरकार द्वारा दी गई छूट के कारण हुआ होगा। छूट अगर किसी को नहीं मिल पाती है तो वो है नौकरी पेशा मध्यम वर्ग। उसके बारे में कोई सरकार कभी गंभीरता से नहीं सोचती।

एक नौकरी पेशा व्यक्ति ही है जिसके पास ईमानदारी से टैक्स चुकाने के सिवाय कोई रास्ता नहीं है। क्योंकि टैक्स कटकर ही वेतन मिल पाता है। जो मिलता है वो सीधा बैंक में जाता है। वहाँ टीडीएस की मार अलग से पड़ती है। फिर अपना ही पैसा निकालने पर भी टैक्स! सालभर में बीस लाख रुपए से ज़्यादा नक़द पैसा निकाला तो टैक्स की मार पड़ जाती है। बाज़ार में निकलता है तो जीएसटी, पेट्रोल- डीज़ल पर टैक्स, जिस घर में रहता है उस पर प्रॉपर्टी टैक्स, जो पानी पीता है, उस पर भी टैक्स! आख़िर कहाँ जाए?

आम आदमी बाज़ार में निकलता है तो जीएसटी, पेट्रोल- डीज़ल पर टैक्स, जिस घर में रहता है उस पर प्रॉपर्टी टैक्स, जो पानी पीता है, उस पर भी टैक्स।

आम आदमी बाज़ार में निकलता है तो जीएसटी, पेट्रोल- डीज़ल पर टैक्स, जिस घर में रहता है उस पर प्रॉपर्टी टैक्स, जो पानी पीता है, उस पर भी टैक्स।

फुटकर व्यापारी नक़दी के नाम पर टैक्स से बच जाते हैं। थोक व्यापारी उल्टी- सीधी बिल्टी बनाकर अपने हिस्से का टैक्स कम कर लेते हैं। एक नौकरी पेशा ही है जो टैक्स बचाने की बात सोच भी नहीं सकता। ऊपर से ईडी, आईटी वालों का ख़ौफ़! सरकार का भी सिर्फ़ उसी बेचारे पर ज़ोर चलता है। क्योंकि यही एक मात्र प्राणी है जिसका सब कुछ लिया-दिया रिकॉर्ड पर होता है। बाक़ी सब मज़े में हैं। कहीं न कहीं से, किसी न किसी तरह टैक्स बचा ही लेते हैं।

वित्तमंत्री द्वारा भी हर बजट में इस नौकरीपेशा व्यक्ति का ही कण्ठ कसा जाता है। इंक्रीमेंट के लिए हर साल टकटकी लगाए रहने वाले इस प्राणी को इंक्रीमेंट के बाद में पता चलता है कि जितना पैसा बढ़ा था, उसका अधिकांश पैसा टैक्स में चला गया। कैश इन हैंड बढ़ने की बजाय घट गया! इस टैक्स प्रणाली में सुधार होना चाहिए।

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