हिमाचल हाईकोर्ट ने कहा.. मैटरनिटी लीव मौलिक अधिकार:दिहाड़ीदार महिला को भी रेगुलर कर्मचारी की तर्ज पर मिले लाभ; स्टेट की चुनौती याचिका खारिज

हिमाचल हाईकोर्ट।
हिमाचल हाईकोर्ट ने मैटरनिटी लीव (मातृत्व अवकाश) को महिला का मौलिक मानवाधिकार बताया है। जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस वीरेंद्र सिंह की बेंच ने एक दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी को ‘डीम्ड’ मातृत्व अवकाश के लाभ के प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए तत्कालीन एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल के फैसले पर अपनी मोहर लगा दी।
बता दें कि यह मामला एक दैनिक वेतन भोगी प्रतिवादी से संबंधित था, जो हर साल 240 दिन काम करने की न्यूनतम शर्त को पूरा करने में विफल रही। इस वजह से उसे मैटरनिटी लीव के लाभ से वंचित रखा गया। हिमाचल प्रदेश प्रशासनिक ट्रिब्यूनल ने महिला को डीम्ड मैटरनिटी लीव का लाभ दिया था।

बच्चे की देखभाल को मैटरनिटी लीव जरूरी- कोर्ट
स्टेट ने ट्रिब्यूनल के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट की बेंच मातृत्व और बचपन दोनों ‘विशेष देखभाल और सहायता’ के लिए मैटरनिटी लीव को जरूरी माना और कहा कि मां बनना एक महिला के जीवन की सबसे स्वाभाविक घटना है। इसलिए नौकरी वाली महिला को अपने बच्चे के जन्म की सुविधा के लिए जो भी आवश्यक हो, नियोक्ता को उसके प्रति संवेदनशील रहना चाहिए।
उन शारीरिक कठिनाइयों का एहसास होना चाहिए, जो कामकाजी महिला को गर्भ में या उसके जन्म के बाद बच्चे पालन-पोषण के दौरान सामना करना पड़ता है। कोर्ट ने कहा कि मैटरनिटी लीव का उद्देश्य महिला और उसके बच्चे को पूर्ण और स्वस्थ रखरखाव प्रदान करके मातृत्व की गरिमा की रक्षा करना है।
श्रम के लिए गर्भवती महिला को नहीं किया जा सकता मजबूर
कोर्ट ने कहा कि दैनिक भोगी महिला कर्मचारी को कठिन श्रम करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह न केवल उसके स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए बल्कि बाल स्वास्थ्य विकास और सुरक्षा के लिए भी हानिकारक होता। इसलिए, याचिकाकर्ता को मातृत्व का लाभ न देना भारत के संविधान के अनुच्छेद 29 और 39डी का उल्लंघन है।