किसी मंत्री को बर्खास्त कर सकते हैं गवर्नर? जानें क्या है कानून

तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि ने भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में बंद मंत्री सेंथिल बालाजी को कैबिनेट से तत्काल प्रभाव से हटा दिया. राज्यपाल के इस फैसले की कड़ी आलोचना हो रही है. साथ में सवाल उठ रहे हैं कि क्या राज्यपाल के पास किसी मंत्री को कैबिनेट से हटाने का अधिकार है या नहीं?

राजभवन की ओर से जारी राज्यपाल के बयान में कहा गया है कि सेंथिल बालाजी के कैबिनेट में बने रहने से वह अपने खिलाफ दर्ज मामलों की जांच प्रभावित कर सकते थे. यही वजह है कि उन्हें तत्काल प्रभाव से बर्खास्त कर दिया गया है. इंडिया टुडे ने संविधान मामलों के एक्सपर्ट्स से बात कर यह जानने की कोशिश की कि क्या राज्यपाल के पास यह अधिकार है कि वह किसी मंत्री को बर्खास्त कर सकता है.

हालांकि, गृह मंत्रालय के सूत्रों के हवाले से खबर है कि सेंथिल को कैबिनेट से बर्खास्त करने के राज्यपाल के फैसले पर रोक लगा दी गई है. सेंथिल को बर्खास्त करने का राज्यपाल का फैसला सही है या नहीं. अटॉर्नी जनरल की कानूनी राय के बाद यह तय होगा. लेकिन फिर भी सवाल उठना लाजिमी है कि क्या राज्यपाल के पास किसी मंत्री को कैबिनेट से हटाने का अधिकार है या नहीं?

राज्यपाल किसी मंत्री को बर्खास्त कर सकता है?

संविधान के अनुच्छेद 164(1) के तहत प्रावधान है कि मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाएगी और अन्य मंत्रियों की नियुक्तियां मुख्यमंत्री की सलाह पर राज्यपाल द्वारा की जाएगी. इस तरह राज्यपाल के पास ना तो किसी को नियुक्त करने और ना ही किसी को मंत्रिमंडल से हटाने की शक्ति है. राज्यपाल सिर्फ मुख्यमंत्री की सलाह पर ही कैबिनेट में मंत्री को नियुक्त कर सकता है.

लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी अचारी ने बताया कि मुख्यमंत्री की सलाह और मशवरे के आधार पर ही राज्यपाल कोई कदम उठा सकता है. संविधान के अनुच्छेद 164(1) के तहत कहा गया है कि राज्यपाल, मुख्यमंत्री की सलाह पर ही कैबिनेट से किसी मंत्री को नियुक्त या हटा सकता है. 

संविधान के अनुच्छेद 164(1) कहता है कि मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल की सलाह पर की जाएगी और कैबिनेट के अन्य मंत्रियों की नियुक्ति मुख्यमंत्री की सलाह पर राज्यपाल द्वारा की जाएगी. इस तरह राज्यपाल सिर्फ मुख्यमंत्री की सलाह पर ही किसी मंत्री को कैबिनेट से हटा या नियुक्त कर सकता है. 

क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स?

यह पूछे जाने पर कि अब सेंथिल बालाजी के सामने क्या कानूनी विकल्प बचे हैं? इस पर अचारी ने बताया कि  राज्यपाल के इस फैसले के खिलाफ सेंथिल हाईकोर्ट का रुख कर सकते हैं क्योंकि यह फैसला संविधान के खिलाफ है. 

एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर राज्यपाल किसी मंत्री को पद से हटाने के लिए एकतरफा फैसला करता है तो सरकार कोर्ट का रुख कर सकती है. 

वरिष्ठ अधिवक्ता पी विल्सन ने इंडिया टुडे को बताया कि राज्यपाल का यह फैसला सही नहीं है और वे इस फैसले को चुनौती देंगे. 
सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता केवी धनंजय ने कहा कि राज्यपाल मौजूदा राजनीतिक स्थिति के आधार पर राज्य सरकार को बर्खास्त करने के लिए राष्ट्रपति से सिफारिश कर सकता है. लेकिन अंतिम फैसला राष्ट्रपति का होगा. लेकिन कैबिनेट से किसी मंत्री को हटाना राज्यपाल की शक्तियों के दायरे में नहीं आता. राज्यपाल को मुख्यमंत्री की सलाह पर भी काम करना होगा. 

सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसले

शमशेर सिंह बनाम पंजाब सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बेंच के फैसले में साफ कहा गया था कि राज्यपाल के मंत्रिपरिषद की सलाह के खिलाफ जाने देने से राज्य के भीतर ही एक अलग समानांतर सरकार की अनुमति नहीं दी जा सकती. 
ठीक इसी तरह संजीवी नायडू बनाम मद्रास सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल राज्य के संवैधानिक प्रमुख है और सरकार का संचालन मंत्रिपरिषद द्वारा किया जाता है. 

नबम रेबिया बनाम डिप्टी स्पीकर मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल सिर्फ मंत्रिपरिषद की सलाह पर फैसले ले सकते हैं. वास्तव में डॉ. बीआर आंबेडकर ने राज्यपाल के पद को लेकर संविधान सभा में कहा था कि संविधान के तहत राज्यपाल खुद से कोई फैसले नहीं ले सकता. उनके कुछ कर्तव्य हैं. 

बता दें कि मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में तमिलनाडु के बिजली और आबकारी मंत्री वी सेंथिल बालाजी को राज्यपाल ने कैबिनेट से तत्काल प्रभाव से बर्खास्त कर दिया है. सेंथिल फिलहाल जेल में बंद हैं. प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने 14 जून को बालाजी को प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्‍ट (पीएमएलए) के तहत गिरफ्तार किया था.

तमिलनाडु राजभवन ने बयान जारी कर कहा कि सेंथिल बालाजी पर भ्रष्टाचार के कई गंभीर आरोप हैं. इन परिस्थितियों में राज्यपाल आरएन रवि ने उन्हें तत्काल प्रभाव से कैबिनेट से बर्खास्त कर दिया है. 

क्या है मामला?

तमिलनाडु के बिजली और आबकारी मंत्री वी सेंथिल बालाजी के ठिकानों पर 24 घंटे छापेमारी के बाद ईडी ने उन्हें 14 जून को गिरफ्तार कर लिया था. इस दौरान मंत्री की तबीयत बिगड़ गई थी और वो पुलिस हिरासत में अस्पताल ले जाए जाने तक रोते दिखाई दिए थे. मंत्री से धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत नौकरी घोटाले को लेकर पूछताछ की गई. इस पूछताछ के बाद उन्हें गिरफ्तार किया गया.

यह छापेमारी करीब 24 घंटे तक चली और उनसे पूछताछ भी की गई. इसके बाद उन्हें बताया गया कि उन्हें जांच एजेंसी ने गिरफ्तार कर लिया है. अपनी गिरफ्तारी की खबर सुनने के बाद उन्होंने सीने में दर्द की शिकायत की और उन्हें चेन्नई के सरकारी अस्पताल भेज दिया गया.

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