चेन्नईएक दिन पहले
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युवा कल्याण और खेल विकास मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने कहा कि हमारे राज्य में दो भाषाएं पहले से है, हमें तीसरी भाषा की जरूरत नहीं।
तमिलनाडु के युवा कल्याण और खेल विकास मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने केंद्र सरकार पर राज्य में हिन्दी थोपने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा- नई शिक्षा पॉलिसी (NEP) में तीन भाषाओं पर जोर दिया गया है।
हमारे राज्य में दो भाषाएं तमिल और इंग्लिश पहले से हैं। तीसरे की हमें जरूरत नहीं है। ऐसे में NEP के नाम पर हम पर जबरन हिन्दी थोपी गई तो हमारी पार्टी DMK इसका विरोध करेगी।
CM स्टालिन भी हिंदी थोपने का आरोप लगा चुके हैं

सीएम स्टलिन ने 2020 में कहा था- तमिलनाडु पर हिंदी थोपना, मधुमक्खी के छत्ते पर पत्थर फेंकने जैसा होगा।
DMK प्रमुख एमके स्टालिन ने जुलाई 2020 में कहा था- केंद्र सरकार की नई शिक्षा नीति पूरे देश पर हिंदी और संस्कृत भाषा थोपने की कोशिश है। यह पुरानी मनुस्मृति पर नया चमकदार कोट चढ़ाया गया है।
स्टालिन ने अपनी पार्टी के सदस्यों के लिए एक लेटर में लिखा था कि हम अपने जैसे विचारों वाले मंत्रियों से हाथ जोड़ेंगे और शिक्षा नीति के खिलाफ लड़ेंगे। पढ़ाई के 10+2 के सिस्टम की जगह 5+3+3+4 लाने पर भी उन्होंने आपत्ति जताई। वोकेशनल एजुकेशन को बच्चों के लिए साइकोलॉजिकल अटैक कहा था।
तमिलनाडु पर हिंदी थोपना, मधुमक्खी के छत्ते पर पत्थर फेंकने जैसा होगा। तमिलनाडु के लोगों के खून में हिंदी के लिए कोई जगह नहीं है।
NEP पर दूसरे राज्यों के मंत्रियों को भी आपत्ति
तमिलनाडु के अलावा- NEP पर अन्य राज्यों के मंत्री भी आपत्ति जताई चुके है। NEP पर कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने इसे गैर हिन्दी राज्यों पर क्रूर हमला बताया था। उनका यह बयान तब आया था, जब वे मुख्यमंत्री नहीं थे। अगस्त 2020 में पश्चिम बंगाल के मंत्री पार्थ चटर्जी ने भी कहा कि NEP को राज्य सरकारों की सहमति के बिना बनाया गया है।
तमिलनाडु में आजादी के पहले से जारी है हिंदी का विरोध
तमिलनाडु में हिंदी का विरोध आज का नहीं है। यहां आजादी के पहले से हिंदी को लेकर विवाद जारी है। पहला मामला अगस्त 1937 में आया था। इस साल कांग्रेस सरकार और मुख्यमंत्री सी राजागोपालाचारी ने मद्रास प्रेसिडेंसी के स्कूलों में हिंदी की पढ़ाई जरूरी कर दी थी। ईवी रामास्वामी की अगुवाई में हिंदी को थोपने को लेकर विरोध शुरू हुआ था। दो साल बाद अंग्रेज सरकार ने फैसले को वापस लेते हुए हिंदी को वैकल्पिक भाषा बना दिया।
दूसरा विरोध 1950 में हुआ। इस समय सरकार ने स्कूलों में हिंदी वापस लाने और 15 साल बाद अंग्रेजी को खत्म करने का फैसला लिया। तब 1959 में जवाहर लाल नेहरू ने संसद में कहा था कि गैर-हिंदी भाषी राज्य अंग्रेजी का इस्तेमाल कर सकते है। 1963 में राजभाषा अधिनियम आने के बाद विरोध फिर शुरू हो गया था।
1966 में पढ़ाई के मीडियम पर हिन्दी का विरोध
1966 में कोठारी आयोग ने ‘शिक्षा और राष्ट्रीय विकास’ पर एक रिपोर्ट तैयार की थी। इसके बाद इस बात पर बहस शुरू हुई थी कि पढ़ाई के मीडियम के तौर पर हिन्दी थोपी जा रही है। तमिलनाडु की दोनों पार्टियों, DMK और AIADMK ने हिन्दी विरोध को एक बड़ा मुद्दा बनाया था।