एक मजार…जहां प्रसाद में मिलती है सिगरेट-शराब:ईसाई अंग्रेज सैनिक की कब्रगाह पर मन्नत मांगते हैं हिंदू-मुस्लिम, प्रसाद के लिए लगती है लाइन
अनुराग गुप्ता2 दिन पहले
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लखनऊ के मूसाबाग में एक मजार है। अपनी मान्यताओं को लेकर दूसरी मजारों से एकदम अलग। यहां माला-फूल और अगरबत्ती तो चढ़ती है, इसके अलावा सिगरेट-शराब और पका चिकन चढ़ाया जाता है। यहां आने वालों का मानना है कि जब भी आए और प्रसाद चढ़ाया हमारी मान्यता पूरी हो गई। दूसरी तरफ जो प्रसाद चढ़ता है, उसे वहीं के लोग पी और खा लेते हैं। गुरुवार को तो यहां सैकड़ों लोगों की भीड़ लगती है।
बसंत पंचमी और क्रिसमस पर यहां बड़ा आयोजन होता है। हजारों लोगों की भीड़ जुटती है। दैनिक भास्कर की टीम इस मजार की कहानी जानने मूसाबाग पहुंची। जो भक्त मिले उनसे बात की। उनकी मान्यताओं को जाना। यहां मजार से जुड़े लोगों से बात की। उन्होंने बताया कि कब और कैसे यहां सिगरेट-शराब और चिकन चढ़ाने का काम शुरू हुआ। आइए सब कुछ जानते हैं…

ये मजार कैप्टन वेल की है। जहां की मान्यता है कि सिगरेट-शराब चढ़ाने से मनोकामना पूरी होती है।
70 साल के बुजुर्ग करते हैं देखरेख
मूसाबाग तो पूरी तरह खंडहर हो गया है। लेकिन मजार को संरक्षित किया गया है। आस-पास के लोगों से कैप्टन वेल की मजार के बारे में पूछने पर पता चला कि पीछे की तरफ है। अंदर से जाने पर रास्ता खराब था। हम अंदर की तरफ टूटी दीवारों को फांदकर पहुंचे।
हमें वहां तक पहुंचाने के लिए साथ में एक लड़का गया। खंडहर पार करते ही कुछ ही दूर पर एक मजार नजर आई। जहां पर 70 साल के बुजुर्ग बैठे थे। उनके पास पहुंचकर मजार के बारे में पूछा, तो कैप्टन वेल की मजार बताई। नाम पूछने पर मिश्री लाल बताया। उन्होंने बताया कि वही उसकी देखरेख करते हैं। ये काम उनके पूर्वजों से उन्हें मिला है।
मजार की मान्यता के बारे में पूछने पर बताया कि लोग अपनी मनोकामना मानकर यहां सिगरेट, शराब, मीट-मुर्गा चढ़ाते हैं। इसके अलावा फूल, चादर और मिठाई भी चढ़ाई जाती है। गुरुवार को काफी भीड़ होती है।
गोरे बाबा नाम से भी मशहूर
मिश्री लाल बताते हैं, बाबा इतने गोरे थे कि चेहरा चमकता था। अंग्रेज तो वैसे भी गोरे होते थे, लेकिन हमारे पूर्वज बताते थे कि ये अलग ही दिखते थे। कैप्टन बाबा नाम पड़ने की एक वजह ये भी रही कि अंग्रेजी सेना के कप्तान थे। इसलिए मरने के बाद कैप्टन बाबा नाम से फेमस हो गए।

ये मिश्री लाल हैं। इनके पूर्वजों इन्हें मजार की देखभाल का काम मिला हुआ है।
सैय्यद इमाम अली की मजार से जुड़ा इतिहास
वहीं से करीब 100 मीटर दूरी पर ढोल बजने की आवाज आ रही थी। उसके बारे में पूछने पर बताया कि सैय्यद इमाम अली की मजार है। वहां आने वाले लोग यहां पर जरूर आते हैं। हम सैय्यद इमाम अली की मजार पहुंचे। जहां पर मेला लगा हुआ था। धीरे-धीरे शाम ढलने के साथ भीड़ बढ़ती जा रही थी।
समिति की कार्यकारिणी टीम में तीन हिंदू सेवादार
सैय्यद इमाम अली शाह की मजार पर हमारी मुलाकात नरेश चंद्र सोनकर से हुई। जो सैय्यद इमाम अली शाह मातबर शाह सेवा समिति, मूसाबाग के महामंत्री हैं। नरेश की चौक में स्कूटर की दुकान है। 1979 से पढ़ाई खत्म करने के बाद इमाम अली की मजार से जुड़े। उनकी नौ पीढ़ियां मजार की सेवादारी कर चुकी हैं। लेकिन वो पहले व्यक्ति हैं, जिन्हें समिति में पद मिला। मजार की कमेटी में तीन पदों पर हिंदू सेवादार हैं।

विश्राम गृह तोड़ते समय चली गई आंख की रोशनी
वो बताते हैं ग्राम बरीकला में सैय्यद इमाम अली शाह का विश्राम गृह था। अंग्रेजी हुकूमत के समय मार्च 1958 में जिसे तोड़ने के लिए मजदूर लगाए गए। विश्राम गृह तोड़ने के लिए मजदूरों ने जब हथौड़ा चलाया। सभी की आंख की रोशनी चली गई।
इसके बाद उस समय के कैप्टन फ्रेड्रिक वेल ने तोड़ने के लिए हथौड़ा चलाया तो वो करीब 100 मीटर दूर जाकर गिरे। जिस जगह वो गिरे उन्हें मधुमक्खियों ने घेर लिया। इस पर कैप्टर वेल गलती मानते हुए सैय्यद इमाम अली शाह की शरण में आ गए। इमाम अली शाह ने माफ करते हुए जिस जगह पर वो गिरे वहां उनकी मजार बनवा दी।
सभी धर्म के त्योहार यहां होते हैं
नरेश बताते हैं कि इस मजार पर सावन, बसंत पंचमी और उर्स सारे त्योहार मनाए जाते हैं। यहां सभी धर्मों के लोग अपनी मनोकामना के लिए आते हैं। सेवादारी में लगे लोग इस चीज का ध्यान रखते हैं कि कोई दुआ, ताबीज वाला व्यक्ति किसी परेशान व्यक्ति से पैसे न ले। साथ ही बताया कि महीने की हर नौचंदी को भव्य मेला भी होता है।

वाइन-चिकन सब स्वीकार है
दुबग्गा के रहने वाले पवन कश्यप बताते हैं पिछले 8 सालों से कप्तान साहब बाबा के पास आ रहे हैं। यहां पर आने वाले लोग बाबा से अपनी मनोकामना मांगते हैं। बाबा को कुछ भी आस्था से चढ़ा सकते हैं, वो सब स्वीकार करते हैं। बाबा को वाइन चिकन सब मंजूर है। हमें बहुत भरोसा है, जब तक जान रहेगी तब तक आते रहेंगे।
अंग्रेज बाबा हैं, इसलिए सिगरेट शराब ले लेते हैं
अशोक कुमार कनौजिया विधायक निवास, दारूलसफा हजरतगंज के रहने वाले हैं। लोक भवन में होम कंट्रोल रुम में एसओ पद पर कार्यरत हैं। वो तीसरी बार बाबा की मजार पर आए हैं। वो बताते हैं कि वाइफ ने मोबाइल पर देखा कि यहां पर आने वाले की सारी तकलीफ दूर हो जाती है। हमारे घर में भी काफी दिक्कत चल रही है।
हम सैय्यद इमाम अली शाह की मजार पर गए। वहां दर्शन किया। यहां आने पर पता चला कि यहां पर सब कुछ चढ़ता है। मंगलवार को बाबा ने बुलाया था। उसके बाद चार गुरुवार को कैप्टन बाबा की मजार पर हाजिरी देने को बोला। मंगलवार को 90 एमएल विस्की चढ़ाई थी। अमूमन सिगरेट ही चढ़ाते हैं। एक बुजुर्ग ने बताया था कि बिरियानी भी चढ़ती है। अंग्रेज बाबा हैं तो सब स्वीकार कर लेते हैं।
श्रद्धा से सिगरेट चढ़ाते हैं, प्रसाद में भी मिलती है सिगरेट
मूसाबाग स्थित बरीमीहां गांव के रहने वाले राकेश बताते हैं कि सिगरेट और शराब गोरे बाबा का प्रसाद है। इसे कोई भी आने-जाने वाला ग्रहण कर सकता है। इसमें कोई रोक टोक नहीं है। कैप्टन बाबा नाम होने के वजह से ज्यादातर लोग कैप्टन सिगरेट ही चढ़ाते हैं। चिकन-मटन भी चढ़ता है, जिसे यहां की देखरेख करने वाले सफाई से रखकर सबको प्रसाद के रूप में बांट देते हैं।

आसपास रहने वाले लोग चढ़ाई हुई सिगरेट को प्रसाद की तरह स्वीकार करते हैं।
ये परंपरा देखकर चौंक गए
सना खान बताती हैं, कैप्टन बाबा की मजार पर पहली बार आई हैं। सिगरेट और शराब का चढ़ावा देखकर ताज्जुब हुआ। करीब 4 साल से सैय्यद इमाम अली की मजार पर आ रही है। मान्यता है कि यहां आने से दिली मुरादे पूरी होती हैं। दो तीन बार दुआ मांगी तो पूरी हुई। इसलिए अक्सर गुरुवार को मजार पर आती हैं।

कैप्टन वेल सिगरेट-शराब के शौकीन
कैप्टन बाबा मजार की एक और कहानी है। साल 1857 में पहली आजादी की लड़ाई अंग्रेजी सेना और स्वतंत्रता सेनानियों के बीच लड़ाई हुई। इस लड़ाई को अंग्रेजों ने जीता, लेकिन घटना में अंग्रेज सेना के अधिकारी कैप्टन एफ वेल मारे गए थे। इसके बाद उनकी कब्र बनाई गई। कैप्टन वेल को सिगरेट व शराब बहुत पसंद थी। इसलिए उनकी मजार पर सिगरेट और शराब चढ़ाते हैं। कैप्टन की मजार पर सिगरेट-शराब, चिकन-मटन चढ़ाने से लोगों की मनोकामना पूरी होती है।
गोलीबारी में खंडहर हुई हवेली
मूसाबाग हवेली हो गई खंडहर साल 1857 में अंग्रेजों और भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के बीच गोलीबारी हुई। जिसमें हवेली पूरी तरह तहस-नहस हो गई। लेकिन मजार पर लगा एक पत्थर बताता है कि उनकी मौत 1858 में हुई।

सहयोगः गौरव मिश्रा, दिव्यांशु मिश्रा। दोनों दैनिक भास्कर में इंटर्नशिप कर रहे हैं।