2 भाइयों ने एग्जाम देकर 26 को दिलाई सरकारी नौकरी:ज्यादातर पुलिसवाले, 8 साल में सिर्फ 1 तक पहुंची पुलिस, बाकी 25 उठा रहे लाखों की तनख्वाह

जयपुरएक दिन पहलेलेखक: मनीष व्यास

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दो भाइयों ने 8 साल में राजस्थान में निकली सरकारी भर्तियों के अनगिनत एग्जाम दिए, लेकिन खुद के लिए नहीं। किसी एग्जाम में मांगीलाल की जगह बैठे तो किसी में सुरेश बिश्नोई की जगह।

इतना बड़ा फर्जीवाड़ा किया कि एग्जाम ये देते थे और 26 लोगों की सरकारी नौकरी लग गई। कोई पुलिस में कॉन्स्टेबल बना तो कोई माइंस डिपार्टमेंट में भर्ती हुआ।

2018 में निकली कॉन्स्टेबल भर्ती परीक्षा पहला मौका था जब छोटा भाई, बड़े भाई की जगह एग्जाम देने चला गया। परीक्षा पास भी कर ली, लेकिन एक गलती के कारण पकड़े गए।

फिर पुलिस के शिकंजे में आए दोनों भाइयों ने वो खुलासे किए जिससे सामने आया राजस्थान का सबसे बड़ा नौकरी कांड।

हाल ही में इस केस से जुड़ी पहली गिरफ्तारी हुई। 24 जून को चित्तौड़गढ़ जिला पुलिस ने एक कॉन्स्टेबल को गिरफ्तार किया जो इन्हीं भाइयों की बदौलत 2015 की कॉन्स्टेबल भर्ती परीक्षा में सिलेक्ट हुआ था।

ये इकलौता नहीं है जो फर्जी तरीके से नौकरी लगा। 26 लोगों की लिस्ट हैं, जिनमें से 25 आज भी अच्छी पोस्ट पर नौकरी भी कर रहे हैं। हर महीने लाखों की तनख्वाह उठा रहे हैं।

हैरानी की बात ये है कि पुलिस के पास इन सबकी डिटेल है लेकिन फिर चार साल में एक ही गिरफ्तारी हुई है।

इस मामले की तह तक जाने के लिए दैनिक भास्कर ने पुरानी FIR निकाली और पड़ताल शुरू की कि आखिर कैसे इतने बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़ा कर लोग राजस्थान पुलिस सहित कई विभागों में भर्ती हो गए? पूरा खुलासा कैसे हुआ और क्यों महज एक ही आरोपी क्यों पकड़ में आया है?

पढ़िए पूरी रिपोर्ट ……..

सबसे पहले पढ़िए कि राजस्थान पुलिस के सबसे बड़े ‘नौकरी कांड’ का खुलासा कैसे हुआ?

शारीरिक दक्षता परीक्षा में पकड़ा गया फर्जी कैंडिडेट

चित्तौड़गढ़ में कॉन्स्टेबल भर्ती परीक्षा- 2018 की शारीरिक दक्षता परीक्षा का आयोजन हो रहा था। सितंबर महीने में हुए एग्जाम में सिलेक्ट कैंडिडेट पहुंचे हुए थे।

इन सभी का लिखित परीक्षा के दौरान ली गई बायोमेट्रिक से कैंडिडेट का वेरिफिकेशन किया जा रहा था। एक अभ्यर्थी जालोर जिले के मालवाड़ा थाना चितलवाना निवासी दिनेश पुत्र मांगीलाल विश्नोई का बायोमेट्रिक वेरिफाई नहीं हो रहा था।

बार-बार प्रयास करने के बावजूद उसकी डिटेल मैच नहीं हो रही थी। मौके पर ड्यूटी में लगे अधिकारियों को फर्जीवाड़े का अंदेशा हो गया। तुरंत ही दिनेश विश्नोई को हिरासत में लेते हुए सख्ती से पूछताछ की गई।

पूछताछ में दिनेश ने उगले राज

दिनेश विश्नोई ने पूछताछ में बताया कि शारीरिक दक्षता परीक्षा से पहले हुई लिखित परीक्षा में उसकी जगह उसका बड़ा भाई गणपत विश्नोई बैठा था। गणपत हूबहू उसी की तरह दिखता है, लेकिन पढ़ाई में काफी होशियार है।

इसी वजह से उसने लिखित परीक्षा बड़ी आसानी से पास की थी। इस पर चित्तौड़गढ़ एसपी ऑफिस के तत्कालीन लिपिक जाकिर हुसैन ने 27 सितंबर 2018 को चित्तौड़गढ़ सदर थाने में धारा 419, 420, 467, 468, 471 और 120 B के तहत मामला दर्ज कराया और दिनेश विश्नोई को गिरफ्तार कर लिया गया।

पुलिस ने इन्वेस्टिगेशन शुरू किया तो पता चला कि उसका भाई गणपत विश्नोई जयपुर के श्यामनगर एरिया में छिपकर रह रहा है। चित्तौड़ से पुलिस टीम जयपुर रवाना हुई और गणपत को श्याम नगर में एक किराए के कमरे में दबिश दी।

वहां मौजूद एक अन्य शख्स ने पुलिस को गुमराह करने का भी प्रयास किया। उसने बताया कि दिनेश और गणपत एक ही हैं। दोनों की फोटो भी लगभग एक जैसी ही दिख रही थी।

ढंग से पूछताछ कर तलाश की गई तो उन्हें वहां छिपा हुआ गणपत विश्नोई मिल गया। आखिरकार उसे गिरफ्तार कर लाया गया।

सदर थाने में दर्ज FIR के मुताबिक दोनों आरोपियों ने पहली पूछताछ में 26 नाम गिनाए थे जिन लोगों की जगह दोनों भाइयों ने परीक्षा दी और वे सभी आजतक नौकरी कर रहे हैं।

सदर थाने में दर्ज FIR के मुताबिक दोनों आरोपियों ने पहली पूछताछ में 26 नाम गिनाए थे जिन लोगों की जगह दोनों भाइयों ने परीक्षा दी और वे सभी आजतक नौकरी कर रहे हैं।

तत्कालीन चित्तौड़गढ़ सदर सीओ अमित सिंह ने अब दोनों भाइयों दिनेश और गणपत को आमने-सामने बैठाकर पूछताछ शुरू की।

पूछताछ में पता चला कि दोनों भाई पहले भी फर्जी अभ्यर्थी बनकर 26 लोगों का पुलिस, GRP, RAC और माइनिंग डिपार्टमेंट में सिलेक्शन करवा चुके हैं, जो आज तक नौकरी कर रहे हैं। किसी ओर की जगह एग्जाम देने का ये सिलसिला पिछले 6-7 साल से चल रहा था।

सभी 26 संदिग्ध कर्मचारियों पर कार्रवाई के लिए वेरिफिकेशन की प्रोसेस हुई शुरू

गिरफ्तार दोनों भाइयों दिनेश और गणपत विश्नोई के इस खुलासे के बाद तो हड़कंप मच गया। पुलिस ने दोनों से वो 26 लोगों के नाम तो जुटा लिए, लेकिन आनन-फानन में कार्रवाई करने से पहले दिनेश और गणपत विश्नोई के इस सनसनीखेज खुलासे का सत्यापन करना भी जरुरी था। तत्कालीन सीओ अमित सिंह ने पूछताछ में सामने आये सभी 26 नामों की गोपनीय लिस्ट बनाई।

इस लिस्ट को एसपी ऑफिस के मार्फ़त पुलिस मुख्यालय जयपुर भेजा। यहां से फिर वो फाइल संबंधित विभागों में भेज दी गई जहां इनके नौकरी करने का खुलासा हुआ था।

पुलिस मुख्यालय ने फाइल में सभी 26 नामों के सर्विस रिकॉर्ड, जिनके बायोमेट्रिक रिकॉर्ड थे उनका डिजीटल वेरिफिकेशन और जिनके रिकॉर्ड नहीं मिले उनका हस्ताक्षर और अंगूठे के साइन से वेरिफिकेशन करने को कहा गया।

चार साल बाद पहली गिरफ्तारी : बाड़मेर जिले में पोस्टेड कॉन्स्टेबल, 8 साल से कर रहा था नौकरी

इस मामले की इन्वेस्टिगेशन के दौरान सामने आया कि बाड़मेर जिले के नागाणा थाने में पोस्टेड कॉन्स्टेबल सुरेश विश्नोई पुत्र भीखाराम विश्नोई निवासी डेडवा थाना सांचोर जिला जालोर का नाम भी उस 26 लोगों की लिस्ट में शामिल था।

मौजूदा चित्तौड़ सदर CO बुद्धराज टांक ने बताया कि इसी के चलते पिछले दिनों कॉन्स्टेबल सुरेश विश्नोई के हस्ताक्षर की FSL जांच के लिए जयपुर मुख्यालय से उसकी परीक्षा शीट मंगवाई गई।

उसके बाद उसे चित्तौड़गढ़ बुलाकर हस्ताक्षर लिए गए। दोनों हस्ताक्षर को फिर FSL जांच में भेजा गया। इसके बाद जो रिपोर्ट आई उसमें सिग्नेचर मिसमैच मिले।

चित्तौड़गढ़ पुलिस की गिरफ्त में सुरेश कुमार विश्नोई। 7 दिन पूछताछ के बाद आरोपी को जेल भेज दिया गया है।

चित्तौड़गढ़ पुलिस की गिरफ्त में सुरेश कुमार विश्नोई। 7 दिन पूछताछ के बाद आरोपी को जेल भेज दिया गया है।

इसके बाद अभी 24 जून को चित्तौड़गढ़ सदर SHO हरेंद्र सिंह सिंह सौदा ने पुलिस टीम टीम भेजकर नगाणा थाने में पोस्टेड कॉन्स्टेबल सुरेश कुमार विश्नोई को गिरफ्तार कर लिया।

इस मामले में चार साल बाद ये पहली गिरफ्तारी थी। गिरफ्तार कॉन्स्टेबल सुरेश बिश्नोई ने पूछताछ में बताया कि 1 जून 2014 को परीक्षा दी थी।

इसके बाद उसे 26 जुलाई 2015 को जॉइनिंग मिली थी। पहले वो चित्तौड़गढ़ पुलिस लाइन में पोस्टेड था। इसके बाद उसका ट्रांसफर बाड़मेर हो गया।

जांच में सामने आया कि वह दिनेश और गणपत विश्नोई का ही रिश्तेदार है। कॉन्स्टेबल सुरेश विश्नोई ने बताया कि उसकी जगह दिनेश विश्नोई ने एग्जाम दिया था, जिसके कारण वह परीक्षा में सिलेक्ट हो गया। दिनेश का नाम फिर से सामने आने पर पुलिस जब उसे गिरफ्तार करने पहुंची तो वह फरार मिला है।

बाकी 25 का क्या हुआ? CO और SHO के पास केस का रिकॉर्ड ही नहीं

करीब 4 साल बाद पुलिस ने एक गिरफ्तारी तो कर ली लेकिन बाकि 25 लोगों पर शिकंजा क्यों नहीं कसा गया? हमने सबसे पहले चित्तोड़ सदर थाने के SHO हरेंद्र सिंह सौदा से जानकारी लेनी चाही तो दो तीन दिन तक वो टालमटोल करते रहे।

आखिर में 3 दिन बाद उन्होंने बताया कि केस से जुड़ी जानकारी चित्तौड़ सदर सीओ बुद्धराज टांक और एसपी ऑफिस से ही मिल पाएगी।

CO बुद्धराज टांक ने बताया कि 26 लोगों में से 3 लोग ही चित्तौड़गढ़ जिले में अलग-अलग डिपार्टमेंट में भर्ती होना पाए गए हैं, लेकिन इनकी जांच अभी जारी है, इसलिए नामों का खुलासा नहीं कर सकते।

वहीं बाकी मामले अलग-अलग जिलों के थे, जिनकी कार्रवाई के लिए संबंधित जिलों को डिटेल भेज दी गई थी। सभी 26 नामों की जानकारी और उनके केस में हुई कार्रवाई की जानकारी भी उनके पास नहीं है। पूरी फाइल एसपी ऑफिस में ही है, वहीं से ये पूरी जानकारी मिल पाएगी।

आखिर में हमने चित्तौड़गढ़ जिले के एसपी राजन दुष्यंत से बात की। उन्होंने बताया कि सभी 26 आरोपियों की लिस्ट संबंधित जिलों में उनके विभाग को कार्रवाई के लिए भेज दी गई थी।

इस लिस्ट में चित्तौड़गढ़ जिले के 3 कर्मचारियों का नाम था। जिले के हर थाने में उनका रिकॉर्ड खंगाला तो 1 कर्मचारियों का रिकॉर्ड नहीं मिला।

वहीं एक का रिकॉर्ड वेरिफाई करने पर सही मिला। तीसरा आरोपी कॉन्स्टेबल सुरेश कुमार विश्नोई बाड़मेर जिले के नगाणा थाने में पोस्टेड मिला। हस्ताक्षर व बायोमेट्रिक मिसमैच होने पर उसे गिरफ्तार कर लिया गया है।

दिनेश विश्नोई और गणपत विश्नोई ने जो 26 नाम बताए थे, उनमें से बाकी 23 आरोपियों की जांच में क्या सामने आया? इसकी उन्हें कोई जानकारी नहीं है। इसकी जानकारी संबंधित जिलों के अधिकारी ही बता पाएंगे।

फर्जीवाड़े से नौकरी दिलाने के लिए गैंग कर रहा था काम

इस केस की इन्वेस्टिगेशन से जुड़े एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि मामले में सामने आया था कि उस समय बेरोजगार युवाओं को फर्जीवाड़े से सरकारी नौकरी दिलाने के लिए एक गैंग संगठित रूप से काम कर रहा था।

हालांकि जांच में महज 26 नाम ही सामने आ पाए थे, जबकि अगर गहनता से पड़ताल की जाती तो ये संख्या काफी बड़ी होने का भी अंदेशा था।

अब इस मामले में कार्रवाई में देरी और फर्जीवाड़ा से नौकरी पाने वालों के नाम गोपनीय रखने के सवाल पर उन्होंने बताया कि जो भी नाम बताए गए हैं, वो गिरफ्तार आरोपियों ने बताए हैं।

उनका खुलासा कर कार्रवाई करने से पहले सभी का वेरिफिकेशन आवश्यक है। हो सकता है कि आरोपियों ने किसी दुर्भावना से भी किसी का नाम ले लिया हो।

इसलिए पूरी जांच-पड़ताल जरुरी है। वहीं मामले की जांच में देरी तो वास्तव में कार्रवाई की मंशा पर सवालिया निशान लगाती ही है।

इन जिलों में पुलिस, GRP, RAC और माइनिंग डिपार्टमेंट में फर्जीवाड़े से नौकरी लगने की बात आई थी सामने

चित्तौड़गढ़ एसपी राजन दुष्यंत ने बताया कि आरोपियों से हुई पूछताछ में सभी आरोपियों का चित्तौड़गढ़ जिले के अलावा जालोर, सिरोही, जोधपुर, उदयपुर, अजमेर, राजसमंद, जैसलमेर, प्रतापगढ़, बाड़मेर और जोधपुर ग्रामीण में राजस्थान पुलिस, GRP, RAC और माइनिंग डिपार्टमेंट में नौकरी लगने की बात सामने आई थी।

ये पूरी लिस्ट उच्चाधिकारियों के साथ ही SOG को उसी समय शेयर कर दी गई थी। इसके साथ ही सभी संबंधित जिलों के विभागीय अधिकारियों को लिस्ट भेजकर कार्रवाई के लिए लिखा था।

लेकिन उनकी कोई स्टेटस रिपोर्ट उनके पास मौजूद नहीं है। हां, चित्तौड़ जिले में पाए गए तीनों मामलों में हमने जांच पूरी कर ली गई है।

FIR की कॉपी जिसमें नौकरियों के फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ है।

FIR की कॉपी जिसमें नौकरियों के फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ है।

इन सवालों के नहीं मिल पाए जवाब ?

  • पुलिस पूछताछ में दिनेश और गणपत द्वारा फर्जीवाड़ा कर नौकरी पाने वाले 26 लोगों के नाम बताए, वो कौन हैं और कहां कितने साल से नौकरी कर रहे हैं?
  • क्या उन सभी 26 नामों की वेरिफिकेशन और उनके जॉइनिंग से जुड़े दस्तावेजों की जांच पूरी हो गई है? जिनकी जांच पूरी हो गई है तो उनमे से कितने सही और गलत पाए गए?
  • चित्तौड़गढ़ सदर थाने में दर्ज मामले में ये खुलासा हुआ था बावजूद इसके चित्तौड़गढ़ जिले को छोड़कर बाकी 23 नामों की सत्यता की जांच क्यों नहीं हुई? अगर सम्बंधित जिलों की पुलिस ने जांच की है तो चित्तौड़ पुलिस के पास इसकी स्टेटस रिपोर्ट क्यों नहीं है?
  • इस पूरी जांच में गोपनीयता का हवाला देकर सभी 26 संदिग्ध नाम क्यों छुपाये जा रहे हैं? जबकि इतने लंबे समय बाद जांच पूरी कर पूरा खुलासा कर दिया जाना चाहिए था।

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